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राजस्थान लोकायुक्त शिकायतों के माध्यम से भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करते हैं
Utkarsh Classes
Updated: 14 Aug 2023
4 Min Read
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लोकपाल या ऑम्बुड्समैन नामक संस्था ने प्रशासन के प्रहरी बने रहने में अन्तर्राष्ट्रीय सफलता प्राप्त की है। इसका प्रारम्भिक श्रेय स्वीडन को जाता है जहाँ सर्वप्रथम इस संस्था की अवधारणा की कल्पना की गई।
लोकायुक्त संस्था का सृजन जन साधारण को स्वच्छ प्रशासन प्रदान करने के उद्देश्य से लोक सेवकों के विरूद्ध भ्रष्टाचार एवं पद के दुरूपयोग सम्बन्धी शिकायतों पर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से जॉंच एवं अन्वेषण करने हेतु राजस्थान लोकायुक्त तथा उप-लोकायुक्त अधिनियम, 1973 के अन्तर्गत हुआ।
लोकायुक्त एक स्वतंत्र संस्थान है जिसका क्षेत्राधिकार सम्पूर्ण राजस्थान राज्य है। यह राज्य सरकार का कोई विभाग नहीं है और न ही इसके कार्य में सरकार का कोई हस्तक्षेप है।
राजस्थान लोकायुक्त तथा उप-लोकायुक्त अधिनियम, 1973 की धारा 7 के अन्तर्गत लोकायुक्त को कतिपय मामलों में मंत्रियों तथा लोक सेवकों के विरूद्ध आरोपित अभिकथनों का अन्वेषण करने की अधिकारिता दी गई है। ये अभिकथन -
लोक सेवकों द्वारा किसी को अनुचित हानि या कष्ट पहुंचाने,
अपने या अन्य किसी व्यक्ति के लिए अवैध लाभ प्राप्त करने हेतु लोकसेवक के रूप में अपनी पदीय स्थिति का दुरूपयोग करने,
अपने कृत्यों का निर्वहन करने में व्यक्तिगत हित या भ्रष्ट अथवा अनुचित हेतुओं से प्रेरित होने,
लोकसेवक की हैसियत में भ्रष्टाचार या सच्चरित्रता की कमी का दोषी होने से संबंधित हो सकते हैं।
अधिनियम की धारा 2(i) में दी गई लोक सेवक की परिभाषा के अनुसार लोकायुक्त को निम्न के विरूद्ध अन्वेषण करने की अधिकारिता हैः-
(i) राजस्थान राज्य की मंत्रिपरिषद का कोई सदस्य (मुख्य मंत्री के अतिरिक्त), जो चाहे किसी भी नाम से ज्ञात हो, अर्थात् मंत्री, राज्य मंत्री या उप-मंत्री,
(ii) राजस्थान राज्य के कार्यकलापों के सम्बन्ध में किसी लोक सेवा में या लोक पद पर नियुक्त व्यक्ति,
(iii) (a) जिला परिषद का प्रत्येक प्रमुख और उप-प्रमुख, पंचायत समिति का प्रधान तथा उप-प्रधान और राजस्थान पंचायती राज अधिनियम के अधीन या उसके द्वारा गठित किसी भी स्थायी समिति का अध्यक्ष,
(b) नगर निगम का प्रत्येक महापौर और उप-महापौर, नगरपालिका/परिषद का प्रत्येक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, नगरपालिका बोर्ड का अध्यक्ष, और उपाध्यक्ष तथा राजस्थान नगरपालिका अधिनियम के अधीन गठित किसी समिति का अध्यक्ष,
(iv) प्रत्येक वह व्यक्ति, जो निम्नलिखित की सेवा में है या उनका वेतन भोगी है, अर्थात्ः-
(a) राजस्थान राज्य में कोई भी स्थानीय प्राधिकरण, जिसे राज पत्र में राज्य सरकार द्वारा, इस निमित्त अधिसूचित किया जाये,
(b) किसी राज्य अधिनियम के अधीन या द्वारा स्थापित और राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन या उसके द्वारा नियंत्रित कोई भी निगम (जो स्थानीय प्राधिकरण न हो),
(c) कम्पनी अधिनियम की धारा 617 के अर्थान्तर्गत कोई भी सरकारी कम्पनी, जिसमें समादत्त अंशपूंजी का इक्यावन प्रतिशत से अन्यून राज्य सरकार द्वारा धारित है या कोई भी कम्पनी जो किसी भी ऐसी कम्पनी की सहायक है जिसमें समादत्त अंशपूंजी का इक्यावन प्रतिशत से अन्यून राज्य सरकार द्वारा धारित है,
(d) राजस्थान सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई भी सोसाइटी, जो राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन है और जिसे राजपत्र में उस सरकार द्वारा इस निमित्त अधिसूचित किया गया है।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति या न्यायाधीश अथवा संविधान के अनुच्छेद 236 के खण्ड (ख) में यथा परिभाषित न्यायिक सेवा का सदस्य,
भारत में किसी भी न्यायालय के अधिकारी अथवा कर्मचारी,
मुख्यमंत्री, राजस्थान
महालेखाकार, राजस्थान,
राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अथवा सदस्य,
मुख्य निर्वाचन आयुक्त, निर्वाचन आयुक्त, प्रादेशिक आयुक्त तथा मुख्य निर्वाचन अधिकारी, राजस्थान,
राजस्थान विधानसभा सचिवालय के अधिकारी एवं कर्मचारी,
सरपंचों, पंचों व विधायकों के विरूद्ध भी शिकायतें की जाती हैं किन्तु उनके विरूद्ध प्रसंज्ञान नहीं लिया जा सकता है क्योंकि वे अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं,
सेवानिवृत्त लोक सेवक ।
प्रथम लोकायुक्त न्यायमूर्ति श्री आई.डी. दुहा थे।
वर्तमान लोकायुक्त न्यायमूर्ति श्री प्रताप कृष्ण लोहरा हैं।
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