इज़राइल के रक्षा मंत्रालय ने "आयरन बीम" के सफल परीक्षण की घोषणा की है। यह एक उच्च-शक्ति वाली लेज़र प्रणाली है और एल्बिट सिस्टम्स और राफेल द्वारा विकसित है।
- इज़राइल के रक्षा मंत्रालय ने "आयरन बीम" के सफल परीक्षण की घोषणा की है। यह एक उच्च-शक्ति वाली लेज़र प्रणाली है, जिसे आने वाली मिसाइलों को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- एल्बिट सिस्टम्स और राफेल द्वारा विकसित, यह आयरन डोम जैसी मौजूदा मिसाइल-रोधी प्रणालियों का पूरक होगा। इसे साल के अंत तक सैन्य एकीकरण के लिए तैयार किया गया है।
- इज़राइल के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि आने वाली मिसाइलों को नष्ट करने के उद्देश्य से एक कम लागत वाली, उच्च शक्ति वाली लेज़र-आधारित प्रणाली का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा हो गया है और यह इस साल के अंत तक सेना द्वारा परिचालन उपयोग के लिए तैयार हो जाएगी।
- राफेल एडवांस डिफेंस सिस्टम्स द्वारा विकसित, "आयरन बीम" इज़राइल के आयरन डोम, डेविड्स स्लिंग और एरो एंटी-मिसाइल सिस्टम का पूरक होगा, जिनका उपयोग गाजा में हमास आतंकवादियों, लेबनान से हिज़्बुल्लाह और यमन में हूतियों द्वारा दागे गए हजारों रॉकेटों को रोकने के लिए किया गया है।
- वर्तमान रॉकेट इंटरसेप्टर की लागत कम से कम $50,000 प्रति इंटरसेप्टर है, जबकि लेज़र के लिए लागत नगण्य है, जो मुख्य रूप से छोटी मिसाइलों और ड्रोन पर केंद्रित हैं।
- रक्षा मंत्रालय के महानिदेशक अमीर बारम ने कहा, "यह दुनिया में पहली बार है कि एक उच्च-शक्ति लेज़र अवरोधन प्रणाली पूरी तरह से परिचालन परिपक्वता तक पहुँच गई है।"
‘आयरन डोम’
- यह एक कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली ‘वायु रक्षा प्रणाली’ है। यह प्रणाली अपनी ओर आने वाले किसी रॉकेट या मिसाइल को ट्रैक करके बेअसर कर देती है। ऐसा करने के लिये इस रक्षा प्रणाली को ‘रडार’ तथा ‘तामीर’ इंटरसेप्टर मिसाइल से लैस किया गया है।
- इसका उपयोग रॉकेट, तोपखाने तथा मोर्टार (C-RAM) के साथ-साथ विमान, हेलीकॉप्टर एवं ड्रोन से निपटने के लिए भी किया जाता है।
- इस प्रणाली को वर्ष 2011 में तैनात किया गया था। राफेल के अनुसार, इसकी सफलता दर 90% से अधिक है। इसमें 2,000 से अधिक अवरोधनों (Interception) को शामिल किया गया है।
भारत
- लेजर तकनीक का उपयोग मुख्य रूप से रक्षा क्षेत्र में निर्देशित-ऊर्जा हथियार (DEW) प्रणालियों, जैसे भारत के शहस्त्र शक्ति और दुर्गा II, के लिए किया जा रहा है, जो ड्रोन और मिसाइलों को निष्क्रिय कर सकते हैं।
- इसके अलावा, लेजर तकनीक का उपयोग अंतरिक्ष यान गुरुत्वाकर्षण तरंगों के मापन (LISA मिशन) और कण भौतिकी में लेजर कूलिंग जैसी उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान में भी किया जा रहा है।
लेज़र तकनीक के मूल सिद्धांत
- लेज़र का आविष्कार थियोडोर मैमन ने सन् 1960 में ह्यूजेस रिसर्च लेबोरेटरीज में किया था, जो अल्बर्ट आइंस्टीन और चार्ल्स एच. टाउन्स द्वारा प्रेरित उत्सर्जन और मेसर के प्रारंभिक विकास पर किए गए सैद्धांतिक कार्य पर आधारित था।
- मैमन के रूबी लेज़र, जिसमें रूबी छड़ को उत्तेजित करने के लिए स्पंदित फ्लैश लैंप का उपयोग किया गया था, ने पहला सुसंगत, प्रवर्धित प्रकाश किरण उत्पन्न किया।
- इस आविष्कार के बाद तेज़ी से विकास हुआ, जिसमें सन् 1960 में अली जावन द्वारा पहला गैस लेज़र और सन् 1962 में रॉबर्ट एन. हॉल द्वारा पहला अर्द्धचालक लेज़र शामिल है।
- यह एक ऐसी तकनीक है, जो प्रकाश की एक अत्यधिक केंद्रित और सुसंगत किरण उत्पन्न करने के लिए क्वांटम यांत्रिकी और प्रकाशिकी के सिद्धांतों का उपयोग करती है।
- लेज़र तकनीक का मूल सिद्धांत फोटॉनों के प्रेरित उत्सर्जन की प्रक्रिया है। जब परमाणु या अणु बाह्य ऊर्जा के संपर्क में आते हैं, तो वे समान ऊर्जा, कला और दिशा वाले फोटॉन (प्रकाश कण) उत्सर्जित करने के लिए प्रेरित होते हैं।