नासा अपने आर्टेमिस कार्यक्रम के तहत वर्ष 2030 तक चंद्रमा पर एक परमाणु रिएक्टर बनाने जा रहा है, यह अप्रैल, 2025 में, चीन ने कथित तौर पर वर्ष 2035 तक चंद्रमा पर एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने की घोषणा के बाद है।
- नासा ने अपने आर्टेमिस कार्यक्रम के तहत वर्ष 2030 तक चंद्रमा पर एक परमाणु रिएक्टर बनाने की योजना का अनावरण किया है, जिसका उद्देश्य मनुष्यों को चंद्र सतह पर वापस लाना और एक स्थायी उपस्थिति स्थापित करना है।
- अप्रैल, 2025 में, चीन ने कथित तौर पर वर्ष 2035 तक चंद्रमा पर एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने की योजना का अनावरण किया। यह संयंत्र उसके नियोजित अंतर्राष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान केंद्र का समर्थन करेगा।
बाह्य अंतरिक्ष संधि
- वर्ष 1967 की बाह्य अंतरिक्ष संधि अंतरिक्ष गतिविधियों को नियंत्रित करती है और राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण उपयोग और सहयोग सुनिश्चित करती है। पहली अंतरिक्ष दौड़ झंडों और पदचिह्नों को लेकर थी।
- अब, दशकों बाद, चंद्रमा पर उतरना पुरानी बात हो गई है। नई दौड़ वहाँ निर्माण करने की है और ऐसा करना शक्ति पर निर्भर है।
छोटे रिएक्टर
- नासा वर्षों से ऊर्जा विभाग के साथ मिलकर चुपचाप छोटी परमाणु ऊर्जा प्रणालियाँ विकसित कर रहा है। योजना एक छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टर को स्थापित करने की है, जो कम से कम 100 किलोवॉट बिजली पैदा कर सके, जो पृथ्वी पर लगभग 80 घरों को बिजली देने के लिए पर्याप्त है।
दक्षिणी ध्रुव
- चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अपने प्रचुर जल-बर्फ भंडार के कारण विशेष ध्यान का केंद्र है, जो जीवन समर्थन और ईंधन उत्पादन के लिए आवश्यक है। हालाँकि, ये क्रेटर स्थायी रूप से छाया में रहते हैं, जहाँ बहुत कम या बिल्कुल भी सूर्य का प्रकाश नहीं मिलता है, जिससे सौर ऊर्जा अव्यावहारिक हो जाती है।
- यह परमाणु रिएक्टर इन चुनौतीपूर्ण वातावरणों में संचालन को सक्षम बनाएगा, वैज्ञानिक अनुसंधान, खनन गतिविधियों और आवास जीवन-समर्थन प्रणालियों का समर्थन करेगा।
पूर्व की योजना
- अंतरिक्ष में परमाणु ऊर्जा कोई नया विचार नहीं है। 1960 के दशक से अमेरिका और सोवियत संघ रेडियोआइसोटोप जनरेटर पर निर्भर रहे हैं, जो उपग्रहों, मंगल रोवर्स और वॉयेजर प्रोब को ऊर्जा प्रदान करने के लिए कम मात्रा में रेडियोधर्मी तत्त्वों, एक प्रकार के परमाणु ईंधन, का उपयोग करते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र का वर्ष 1992 का बाह्य अंतरिक्ष में परमाणु ऊर्जा स्रोतों के उपयोग से संबंधित सिद्धांत, एक गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव, यह मानता है कि उन मिशनों के लिए परमाणु ऊर्जा आवश्यक हो सकती है, जहाँ सौर ऊर्जा अपर्याप्त है। यह प्रस्ताव सुरक्षा, पारदर्शिता और अंतर्राष्ट्रीय परामर्श के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
आर्टेमिस मिशन
- आर्टेमिस मिशन (Acceleration, Reconnection, Turbulence and Electrodynamics of Moon's Interaction with the Sun : ARTEMIS) अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने के लिए शुरू किया गया दूसरा मिशन है।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 1969 में नासा का 'अपोलो मिशन' (Apollo 11) चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला प्रथम मानव मिशन था। 21 जून, 2023 को भारत ने आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे वह 27वाँ हस्ताक्षरकर्ता देश बन गया।
- आर्टेमिस मिशन को नासा का चंद्रमा पर वापसी कार्यक्रम (Back-to-moon program) भी कहा जा रहा है। इस 'चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम' का नामकरण नासा ने यूनानी देवता अपोलो की जुड़वा बहन और चंद्रमा की देवी 'आर्टेमिस' के नाम पर किया है।
- इस कार्यक्रम का पहला मिशन, आर्टेमिस-1 है। यह एक मानवरहित परीक्षण है। इसके सफल होने पर आर्टेमिस-2 मिशन लॉन्च किया जाएगा, यह अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा की कक्षा तक ले जाकर, पुनः वापस लौट आएगा; यह भी एक परीक्षण चरण ही है। अंततः आर्टेमिस-3 द्वारा मानव को चंद्रमा की सतह पर उतारा जाएगा।
- इस मिशन में नासा के साथ-साथ अन्य देशों -कनाडा, यूरोप और जापान की अंतरिक्ष एजेंसियाँ भी शामिल हैं।
NASA के बारे में
- NASA की स्थापना 29 जुलाई, 1958 को नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एक्ट के तहत की गई थी। नासा ने राष्ट्रीय सलाहकार समिति (NACA) का स्थान लिया, जो 1915 में स्थापित हुई थी।
- 1957 में सोवियत संघ द्वारा स्पुतनिक के प्रक्षेपण के जवाब में, नासा का गठन अमेरिकी अंतरिक्ष कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। वाशिंगटन स्थित नासा मुख्यालय, प्रशासक के नेतृत्व में एजेंसी को समग्र मार्गदर्शन और दिशा प्रदान करता है।