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रूस अफ़गानिस्तान में तालिबान सरकार को आधिकारिक तौर पर मान्यता देने वाला पहला देश बना
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Updated: 05 Jul 2025
4 Min Read
रूस 3 जुलाई 2025 को अफगानिस्तान में मौजूदा तालिबान शासन को मान्यता देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। अगस्त 2021 में तालिबान ने अमेरिका समर्थित अशरफ़ ग़नी सरकार को उखाड़ फेंका और सत्ता पर पुनः कब्जा किया था। तालिबान के सत्ता में आते ही भारत समेत ज़्यादातर देशों ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था।
चीन, पाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात के साथ रूस दुनिया के उन गिने-चुने देशों में से एक था, जिसने 2021 में अफ़गानिस्तान में अपना दूतावास बंद नहीं किया था।
भारत काबुल में तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देता है, लेकिन उसने जून 2002 में काबुल में अपना बंद दूतावास फिर से खोल दिया है।
1979 में, सोवियत संघ, जिसका रूस भी एक हिस्सा था, ने साम्यवादी सरकार का समर्थन करने के लिए अपने सैनिकों को अफ़गानिस्तान भेजा और अफ़गानिस्तान में बाबरक करमल सरकार की स्थापना की।
इससे देश में गृहयुद्ध छिड़ गया जिसमें पाकिस्तान के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा वित्तपोषित और समर्थित अफ़गान मुजाहिदीन ने लगभग 15,000 सोवियत सैनिकों की जान ले ली।
1989 में सोवियत संघ अफ़गानिस्तान से वापस चला गया और रूस समर्थित मोहम्मद नजीबुल्लाह सरकार के पतन के बाद,1992 में रूस ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया।
1992 में अफ़गान मुजाहिदीन ने अफ़गानिस्तान में सत्ता संभाली।
अफ़गानिस्तान में तालिबान
तालिबान, जो तालिब से निकला है, का पश्तो भाषा में अर्थ "छात्र" होता है। वे एक कट्टरपंथी सुन्नी पश्तून समूह हैं जिसमें वे अफ़गान शरणार्थी शामिल हैं जिन्होंने पाकिस्तान के मदरसों में पढ़ाई की है।
वे 1996 में सत्ता में आए और एक कट्टरपंथी इस्लामी सरकार की स्थापना की। तालिबन ने देश में सख्त शरिया कानून लागू किया और अल-कायदा जैसे अन्य आतंकवादी समूहों को पनाह दी।
अल-कायदा के आतंकवादियों द्वारा 11 सितंबर 2001 को संयुक्त राज्य अमेरिका पर हमला करने के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफ़गानिस्तान पर हमला कर, नवंबर 2001 में तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिया।
तालिबान ने पाकिस्तान में शरण ली और अमेरिकी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया।
अमेरिकी सेना अंततः फरवरी 2020 में अफ़गानिस्तान से वापस चली गई और अगस्त 2021 में उसके द्वारा समर्थित अशरफ गनी की सरकार गिर गई, और तालिबान वापस सत्ता में आ गया।
तालिबान पर प्रतिबंध
तालिबान सरकार ने देश में फिर से सख्त शरिया कानून लागू किए हैं और लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया है।
संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं के खिलाफ़ उनकी नीति के लिए तालिबान पर प्रतिबंध लगाए हैं।
तालिबान सरकार को संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस सहित दुनिया के कई देशों द्वारा आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है।
अप्रैल 2025 में, रूस ने तालिबान के आतंकवादी संगठन के दर्जा को रद्द कर दिया।
1996 में तालिबान द्वारा काबुल पर कब्ज़ा करने के बाद भारत ने अफ़गानिस्तान में अपना दूतावास बंद कर दिया था।
2001 में तालिबान के सत्ता से हटने के बाद इसने काबुल में अपना दूतावास फिर से खोला।
भारत ने पारंपरिक रूप से तालिबान को पाकिस्तान का प्रतिनिधि माना है और इसे मान्यता देने से इनकार किया है।
जब 2021 में तालिबान ने फिर से सत्ता पर कब्ज़ा किया, तो भारतीय दूतावास फिर से बंद हो गया।
हालाँकि भारत सरकार तालिबान को मान्यता नहीं देती है, लेकिन भारत सरकार ,2002 से अफ़गानिस्तान को भोजन और दवा के रूप में मानवीय सहायता लगातार भेजता रहा है।
वर्तमान में अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के बीच संबंध खराब हो गए हैं और दोनों के बीच सीमा पर कई झड़पें हुई हैं।
हल के समय में भारत सरकार का तालिबन के प्रति रुख में बदलाव आया है।
जनवरी 2025 में, भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दुबई में अफ़गानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की।
मई 2025 में पहली बार विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने आमिर खान मुत्तकी से बात की। अफगानिस्तान सरकार ने पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की और भारत के ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन किया।
उम्मीद है कि भारत सरकार भी जल्द ही तालिबान सरकार को मान्यता देगी।
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