नीदरलैंड के हेग शहर में स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ने भारत सरकार के रुख का समर्थन करते हुए फैसला सुनाया है कि विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) 1960 के प्रावधानों के तहत जम्मू और कश्मीर में दो जलविद्युत परियोजनाओं के डिजाइन और पानी के उपयोग पर निर्णय लेने के लिए 'सक्षम' है।
स्थायी मध्यस्थता न्यायालय का यह फैसला पाकिस्तान की उस याचिका पर आया है, जिसमे कश्मीर में किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजना के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
भारत ने इसका विरोध किया क्योंकि उसके अनुसार, सिंधु जल संधि 1960 के प्रावधान के तहत इस विवाद को विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ के माध्यम से पहले हल किया जाना चाहिए।
1960 की सिंधु जल संधि के तहत सिंधु नदी और इसकी पांच सहायक नदियों- ब्यास, सतलुज, रावी, झेलम और चिनाब का पानी भारत और पाकिस्तान के बीच बांटा गया था।
भारत को सतलुज, ब्यास और रावी नदियों को विकसित करने का अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों को विकसित करने का अधिकार है।
भारत पाकिस्तान को आवंटित नदियों का उपयोग कर सकता है, लेकिन भारत ,पाकिस्तान को नदी के पानी के प्रवाह में बाधा नहीं डालेगा।
यदि दोनों देशों के बीच कोई विवाद है तो तीन चरणीय विवाद समाधान तंत्र है।
स्थायी मध्यस्थता न्यायालय की स्थापना 1899 में आयोजित प्रथम हेग शांति सम्मेलन के दौरान की गई थी।
स्थायी मध्यस्थता न्यायालय की स्थापना अंतर्राष्ट्रीय विवादों के प्रशांत समाधान के लिए कन्वेंशन द्वारा की गई थी, जिस पर प्रथम हेग शांति सम्मेलन के दौरान सहमति बनी थी।
स्थायी मध्यस्थता न्यायालय एक अंतर-सरकारी निकाय है जो राज्यों, राज्य संस्थाओं, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और निजी पक्षों को विभिन्न विवाद समाधान सेवाएँ प्रदान करता है।
मुख्यालय: द हेग, नीदरलैंड
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