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जर्मनवॉच के जलवायु जोखिम सूचकांक 2026 में भारत को 1995-2024 के लिए मिला 9वाँ स्थान

Utkarsh Classes
Updated: 13 Nov 2025
3 Min Read

जर्मनवॉच द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट, जलवायु जोखिम सूचकांक (सीआरआई) 2026, जो 11 नवंबर, 2025 को बेलेम में आयोजित COP30 में जारी की गई, के अनुसार वर्ष 1995 और 2024 के बीच 9,700 से अधिक चरम मौसम की घटनाओं से 8,32,000 से अधिक लोग मारे गए, लगभग 5.7 अरब लोग प्रभावित हुए और आर्थिक नुकसान 4.5 ट्रिलियन डॉलर (मुद्रास्फीति-समायोजित) से अधिक हो गया।
जर्मनवॉच एक बॉन-स्थित पर्यावरण एवं विकास संगठन है जो जलवायु नीति में वैश्विक समानता और स्थिरता की वकालत करता है।
शीर्ष 3 सबसे अधिक प्रभावित देश - डोमिनिका, म्यांमार और होंडुरास।
निरंतर खतरों की श्रेणी - भारत, फिलीपींस, निकारागुआ और हैती।
वर्ष 1995-2024 की अवधि के दौरान सबसे अधिक प्रभावित देशों में भारत 9वें स्थान पर है, जहाँ बार-बार बाढ़, चक्रवात, सूखा और लगातार बढ़ती भीषण गर्मी का सामना करना पड़ रहा है।
वर्ष 2024 में चरम मौसम से सबसे ज़्यादा प्रभावित लोगों की संख्या के लिहाज़ से, भारत बांग्लादेश और फिलीपींस के बाद तीसरे स्थान पर है। वर्ष 2024 के लिए भारत का स्थान 15वाँ था।
भारत में वर्ष 1995 के बाद से लगभग 430 चरम मौसम की घटनाएँ हुई हैं, जिनमें 80,000 से ज़्यादा मौतें हुईं, 1.3 बिलियन लोग प्रभावित हुए और लगभग 170 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
रिपोर्ट में वर्ष 1998 के गुजरात चक्रवात, वर्ष 1999 के ओडिशा चक्रवात, वर्ष 2013 में उत्तराखंड की बाढ़, वर्ष 2019 में महाराष्ट्र और त्रिपुरा में आई भीषण बाढ़ और वर्ष 2020 में आए चक्रवात अम्फान जैसी बड़ी आपदाओं का हवाला दिया गया है, जिन्हें जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा रहा है।
पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने अम्फान की भीषण मार झेली, जबकि बार-बार आने वाली भीषण गर्मी ने उत्तरी और मध्य भारत को झुलसा दिया है और हाल के वर्षों में तापमान 50°C के करीब पहुँच गया है।
उपलब्ध कराई गई रिपोर्ट में दीर्घकालिक सूचकांक में डोमिनिका, म्यांमार और होंडुरास को सबसे अधिक प्रभावित देशों के रूप में चिन्हित किया गया है, जबकि सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस, ग्रेनेडा और चाड वर्ष 2024 की सूची में शीर्ष पर हैं।
CRI विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले 30 वर्षों में लू और तूफ़ानों के कारण 33% मौतें हुईं, जबकि बाढ़ के कारण 25% मौतें हुईं। तूफ़ानों के कारण 58% आर्थिक नुकसान हुआ - लगभग 2.64 ट्रिलियन डॉलर - और बाढ़ के कारण 1.31 ट्रिलियन डॉलर, जबकि बाढ़ ने दुनिया भर में लगभग आधे प्रभावित लोगों को प्रभावित किया।
उत्पत्ति: वर्ष 2006 में वार्षिक वैश्विक जलवायु प्रभाव सूचकांक के रूप में प्रस्तुत किया गया।
जारीकर्ता - जर्मन वॉच, एक पर्यावरण थिंक टैंक।
डेटा स्रोत - EM-DAT अंतर्राष्ट्रीय आपदा डेटाबेस, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक।
कार्यप्रणाली और मानदंड: CRI के अंतर्गत छह प्रमुख संकेतकों के आधार पर देशों पर, पूर्ण और सापेक्ष दोनों रूप में, चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव का आकलन किया जाता है: आर्थिक नुकसान, मृत्यु दर और प्रभावित लोग।
जर्मनवॉच यह वर्ष 1991 में स्थापित एक स्वतंत्र विकास और पर्यावरण गैर-सरकारी संगठन है। इसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और वैश्विक उत्तर और दक्षिण के देशों के बीच संबंधों पर सार्वजनिक नीति को प्रभावित करना है।
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