केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने प्रोफेसर नईमा खातून को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू ) का कुलपति नियुक्त किया है। वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति हैं।
विश्वविद्यालय के विजिटर के रूप में कार्यरत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा उनके नाम को मंजूरी दिए जाने के बाद मंत्रालय ने प्रोफेसर खातून की नियुक्त के लिए अधिसूचना जारी किया। वर्तमान में वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के महिला कॉलेज की प्रिंसिपल हैं।
प्रोफेसर खातून को कार्यभार ग्रहण करने की तारीख से पांच साल की अवधि या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक , जो भी पहले हो, के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया है।
प्रोफेसर नईमा खातून अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की कुलपति नियुक्त होने वाली पहली महिला हैं। बेगम सुल्तान जहाँ के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शीर्ष पद पर आसीन होने वाली दूसरी महिला हैं । बेगम सुल्तान को 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में नियुक्त किया गया था।
वर्तमान में ,अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय महिला कुलपति वाला भारत का दूसरा केंद्रीय विश्वविद्यालय बन गया है। वर्तमान में, शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली की कुलपति हैं।
प्रोफेसर नईमा खातून ने 1998 में एक व्याख्याता के रूप में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शामिल हुईं थीं । उन्हें बाद में विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग का अध्यक्ष बनाया गया और 2014 में उन्हें महिला कॉलेज में प्रिंसिपल नियुक्त किया गया। उन्होंने रवांडा के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया है।
अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना 1920 में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम, 1920 के तहत की गई थी। अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय की उत्पत्ति 7 जनवरी 1877 को सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज से मानी जाती है।
सर सैयद ने 24 मई 1875 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में मदरसातुल उलूम की स्थापना की थी । उन्होंने इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों के मॉडल पर मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की था । इसका मुख्य उद्देश्य भारत में मुस्लिम आबादी के बीच विज्ञान और अंग्रेजी के अध्ययन को बढ़ावा देना था।
वर्तमान में विश्वविद्यालय के पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, केरल के मल्लपुरम और बिहार के किशनगंज में अध्ययन केंद्र हैं
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत भारत में अल्पसंख्यक समुदायों को अपने स्वयं के शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार है। अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए आरक्षण नहीं होता है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 जिसे 2012 में संशोधित किया गया था , अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं होता हैं ।
अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ मामले 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान नहीं है क्योंकि इसकी स्थापना मुसलमानों द्वारा नहीं बल्कि ब्रिटिश सरकार द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम 1920 के माध्यम से की गई थी।
1981 में संसद ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम 1920 में संशोधन करके 'अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना भारत में मुसलमानों द्वारा की गई थी' को जोड़ा था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम 1920 में 1981 के संशोधन को रद्द कर दिया था ।
भारत सरकार और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 2014 में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपना मामला जारी रखा.
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।