जयपुर सैन्य स्टेशन प्लास्टिक कचरे से बनी सड़क बनाने वाला देश का दूसरा सैन्य स्टेशन बन गया है। प्लास्टिक कचरे से बनी सड़क का उद्घाटन 26 जून 2024 को 61 सब एरिया के जनरल ऑफिसर कमांडिंग मेजर जनरल आर एस गोदारा द्वारा किया गया।
2019 में देश का पहला सैन्य स्टेशन जहां प्लास्टिक कचरे से सड़क का निर्माण किया गया,नारंगी सैन्य स्टेशन , गुवाहाटी,असम में स्थित है।
जयपुर सैन्य स्टेशन सड़क 100 मीटर लंबी है और यह सगत सिंह रोड अंडर ब्रिज से शावक कॉर्नर कॉम्प्लेक्स तक है।
टिकाऊऔर हरित सैन्य स्टेशन बनाने की भारतीय सेना की नीति के अनुरूप, जयपुर में सड़क का निर्माण डीप कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड की सहायता से जीई (दक्षिण), सीई जयपुर जोन के तत्वावधान में किया गया था।
पारंपरिक सड़कों की तुलना में प्लास्टिक कचरे से बनी सड़कें अधिक टिकाऊ होती हैं, इनमें टूट-फूट कम होती है, पानी का बहाव कम होता है।
भारत में सड़क निर्माण में प्लास्टिक अपशिष्ट का उपयोग
2015 में भारत सरकार ने पायलट आधार पर राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण में प्लास्टिक कचरे के उपयोग की अनुमति दी थी । ऐसा देश में बढ़ती प्लास्टिक कचरे की समस्या से निपटने के लिए किया गया था। प्लास्टिक गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्री है और इसका जीवन बहुत लंबा है। इस्तेमाल के बाद आमतौर पर प्लास्टिक को फेंक दिया जाता है जिससे अपशिष्ट की समस्या पैदा होती है। प्लास्टिक कचरे को या तो जला दिया जाता है या यूं ही फेंक दिया जाता है। प्लास्टिक जलाने से वायु प्रदूषण होता है और फेंके गए प्लास्टिक कचरे से जल, भूमि, समुद्र और नदियाँ प्रदूषित होती हैं।
कृषि क्षेत्रों में पाया जाने वाला प्लास्टिक कचरा बीज के अंकुरण को अवरुद्ध करता है और वर्षा जल के अवशोषण को रोकता है। कूड़े में फेंकी गई प्लास्टिक की थैलियाँ खाने के कारण कई जानवर विशेषकर गायें दम घुटने से मर जाती हैं।
त्यागराजार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, मदुरै के प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन और सेंटर फॉर स्टडीज ऑन सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट (सीएसएसडब्ल्यूएम) में उनकी टीम ने सड़क बनाने में प्लास्टिक कचरे का उपयोग करने के लिए एक तकनीक विकसित और पेटेंट कराई है। प्लास्टिक कचरे को गर्म कोलतार के साथ मिलाया जाता है और परिणामी मिश्रण को सड़क बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थर पर लेपित किया जाता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने प्लास्टिक कचरे से बनी सड़क का ऑडिट किया और पाया कि निर्माण के चार साल बाद भी सड़कों पर कोई गड्ढा, उखड़ना, या अन्य कोई समस्या नहीं पायी गई ।
प्लास्टिक कचरे से बनी सड़कों की सफलता के बाद सरकार ने सड़कों के निर्माण के लिए प्लास्टिक कचरे को गर्म कोलतार के साथ मिलाने की अनुमति दे दी है।
प्रोफेसर वासुदेवन भारत के प्लास्टिक मैन के रूप में भी प्रसिद्ध हैं और भारत सरकार ने उनके योगदान के लिए ,उन्हें 2018 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म श्री से सम्मानित किया।
2017 में भारत सरकार ने सड़कों के निर्माण के लिए 10 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे को गर्म कोलतार के साथ मिलाने की अनुमति दी।
2023 में भारत सरकार ने पांच लाख आबादी वाले शहरी-ग्रामीण क्षेत्रों में 50 किलोमीटर के दायरे में राष्ट्रीय राजमार्गों की सर्विस सड़कों के निर्माण और मरम्मत में प्लास्टिक कचरे का उपयोग अनिवार्य कर दिया है।
चेन्नई, दिल्ली, जमशेदपुर, पुणे, इंदौर, लखनऊ आदि शहरों में प्लास्टिक कचरे से बनी सड़कें बन रही हैं।
यह तकनीक 15 प्रतिशत कम तारकोल की खपत करती है और राजमार्ग को पारंपरिक सड़कों के लिए पांच साल के बजाय 10 साल तक टिकाऊ बनाती है। चूंकि प्लास्टिक पानी प्रतिरोधी है, इसलिए सड़क पर कोई गड्ढे नहीं बनते हैं। पारंपरिक सड़कों पर गड्ढे बन जाते हैं क्योंकि बारिश का पानी सड़क के अंदर चला जाता है जिससे सड़क को नुकसान होता है।