भारत की दूसरी-स्ट्राइक परमाणु क्षमता को महत्वपूर्ण मजबूती प्रदान करते हुये , भारतीय नौसेना ने अपनी परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी आईएनएस अरीघात से परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम K-4 मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। इस सफल उपयोगकर्ता परीक्षण से देश के परमाणु त्रिकोण को भी मजबूती मिलेगी
आईएनएस अरिघाट चार K-4 मिसाइल ले जाने में सक्षम है।
भारतीय नौसेना ने 29 अगस्त 2024 को अपनी दूसरी परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी, आईएनएस अरीघात को कमीशन किया था। भारतीय नौ सेना की पहली परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी, आईएनएस अरिहंत को नवंबर 2017 में शामिल किया गया था।
आईएनएस अरिहंत केवल एक K4 मिसाइल ले जा सकता है।
K-4 रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित एक परमाणु-सक्षम पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल (एसएलबीएम) है। आईएनएस अरिहंत/आईएनएस अरीघात पर अंतिम रूप से शामिल किए जाने से पहले यह मिसाइल उपयोगकर्ता परीक्षण चरण में है।
यह डीआरडीओ द्वारा विकसित की जाने वाली दूसरी एसएलबीएम है।
भारत की पहली एसएलबीएम , सागरिका या K-15 है, जिसे पहले ही आईएनएस अरिहंत में शामिल किया जा चुका है।
K-15 की मारक दूरी 750 किलोमीटर है।
K-4 की मारक दूरी 3500 किलोमीटर है।
एसएलबीएम भारत की दूसरी स्ट्राइक क्षमता और परमाणु त्रिकोण के लिए महत्वपूर्ण है।
परमाणु त्रिकोण से तात्पर्य देश की भूमि (सेना), वायु (वायु सेना) या समुद्र (नौसेना) से परमाणु हथियार लॉन्च करने की क्षमता से है।
दूसरी स्ट्राइक क्षमता से तात्पर्य दुश्मन के परमाणु हथियार से हमला होने के बाद किसी देश की दुश्मन पर परमाणु हथियार से पलटवार हमले करने की क्षमता से है। इसमे सबसे महत्वपूर्ण नौ सेना की परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी की होती है।
परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी ,डीजल/इलेक्ट्रिक पनडुब्बी की तुलना में अधिक समय तक पानी के नीचे रह सकती है और इसका पता लगाना काफी मुश्किल होता है।
इसके अलावा K-15 मूल रूप से पाकिस्तान मे सामरिक महत्व वाले ठिकाने को निशाना बनाने के लिए विकसित किया गया है।
भारत ,चीन को अपने सबसे बड़ा सुरक्षा खतरा मानता है। K-4 मिसाइल के सफल परीक्षण से भारत की चीन के कई इलाकों में मार करने की क्षमता बढ़ जाएगी।
फुल फॉर्म
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