भारत सरकार ने घरेलू उत्पादित कच्चे पेट्रोलियम तेल और पेट्रोल, डीजल और विमानन टर्बाइन ईंधन (एटीएफ) के निर्यात पर विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, जिसे अप्रत्याशित कर(विंडफॉल टैक्स) के रूप में भी जाना जाता है, को खत्म कर दिया है। इससे पहले सरकार ने 18 सितंबर 2024 को डीजल, पेट्रोल और विमानन टर्बाइन ईंधन पर अप्रत्याशित कर टाकर शून्य कर दिया था।
सरकार ने पेट्रोल और डीजल के निर्यात पर लगाए गए रोड एंड इंफ्रास्ट्रक्चर सेस को भी खत्म कर दिया है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने 2 नवंबर 2024 को इन करों को खत्म करने की घोषणा की।
भारत सरकार ने रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे पेट्रोलियम तेल और उसके उत्पादों की कीमतों में अचानक वृद्धि के कारण तेल कंपनियों द्वारा अर्जित असामान्य मुनाफे को लक्षित करने के लिए 1 जुलाई 2022 को अप्रत्याशित कर लगाया।
कर को खत्म करने का निर्णय प्रधान मंत्री कार्यालय (पीएमओ), राजस्व विभाग और केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा समीक्षा के बाद लिया गया था।
अप्रत्याशित कर क्यों लगाया गया?
- सरकार के अनुसार, भारतीय तेल कंपनियों विदेशों से कच्चा तेल आयात करते हैं, भारत में उसका शोधन करते हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल, डीजल और विमानन टरबाइन ईंधन बेचते हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें बहुत अधिक थीं और मुनाफा भी। इसके परिणामस्वरूप देश के विभिन्न हिस्सों में पेट्रोलियम उत्पादों की कमी हो गई थी।
- भारत सरकार ने तेल कंपनियों को भारत से पेट्रोलियम उत्पादों और कच्चे तेल के निर्यात से हतोत्साहित करने के लिए एक विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क या अप्रत्याशित कर लगाया।
- इससे देश के भीतर इन पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति बढ़ने और कीमतों में कमी आने की उम्मीद थी।
- कर के माध्यम से एकत्र धन का उपयोग सरकार द्वारा विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रमों को निधि देने के लिए किया जाना था।
- सरकार हर 15 दिनों में इन विशेष करों की समीक्षा भी करती है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत के आधार पर उन्हें बढ़ाती या घटाती है।
सरकार ने कर क्यों खत्म किया?
पेट्रोलियम उत्पादों पर अप्रत्याशित कर खत्म करने के सरकार के फैसले के पीछे कई कारण हैं।
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत स्थिर हो गई है और सरकार को अचानक से इनके कीमतों में बढ़ोतरी की फिलहाल उम्मीद नहीं है।
- अप्रत्याशित कर से मिलने वाले राजस्व में भी गिरावट का रुख देखने को मिल रहा है। इस कर के जरिए राजस्व संग्रह 202-23 में करीब 25,000 करोड़ रुपये से घटकर 2024-25 में करीब 6,000 करोड़ रुपये हो गया।
- कच्चे तेल के घरेलू उत्पादकों ने अप्रत्याशित कर का विरोध किया है क्योंकि इससे उनकी लाभप्रदता पर नकारात्मक असर पड़ा है और घरेलू उत्पादन हतोत्साहित हुआ है।
- इससे पेट्रोलियम क्षेत्र में विदेशी और भारतीय निवेशकों के बीच अनिश्चितता भी पैदा हो गई।
अप्रत्याशित कर या विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क?
यह उन कंपनियों पर लगाया जाने वाला एक विशेष कर है जो अपने द्वारा बेचे जाने वाले सामान की कीमत में अचानक वृद्धि के कारण असामान्य लाभ कमाती हैं।
भारत में, घरेलू कच्चे तेल की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से जुड़ी हुई हैं। अंतर्राष्ट्रीय कीमत में वृद्धि के साथ, घरेलू कीमत अपने आप बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप ओएनजीसी, ऑयल इंडिया लिमिटेड और वेदांता लिमिटेड जैसी कच्चे तेल उत्पादक कंपनियों और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड जैसी पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात करने वाली कंपनियों को असामान्य लाभ होता है।