30 मार्च 2024 को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुमर्मू ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पीवी नरसिम्हा राव, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एम.एस.स्वामीनाथन को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया। पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को 31 मार्च 2024 को राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।लालकृष्ण आडवाणी को छोड़कर चौधरी चरण सिंह, पीवी नरसिम्हा राव, कर्पूरी ठाकुर और एम.एस.स्वामीनाथन को मरणोपरांत भारत रत्न दिया गया।
चौधरी चरण सिंह के लिए उनके बेटे जयंत चौधरी ने राष्ट्रपति से यह पुरस्कार प्राप्त किया और पी.वी.नरसिम्हा राव के लिए यह पुरस्कार उनके पुत्र पीवी प्रभाकर राव ने प्राप्त किया । कर्पूरी ठाकुर के पुत्र रामनाथ ठाकुर ने अपने पिता. की ओर से यह पुरस्कार प्राप्त किया और श्रीमती नित्या राव ने अपने पिता एम.एस स्वामीनाथन की ओर से यह पुरस्कार प्राप्त किया।
इस साल सरकार ने पांच लोगों को भारत रत्न से सम्मानित किया है। यह एक वर्ष में सबसे अधिक संख्या में प्रदान किए जाने वाले भारत रत्न हैं । इससे पहले 1999 में चार लोगों को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
13 फरवरी, 1948 को भारत सरकार ने सम्मान और पुरस्कारों पर प्रधान मंत्री समिति की स्थापना की थी । भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार बी.एन.राउ समिति के अध्यक्ष थे। समिति ने 9 मार्च, 1948 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
बी.एन.राउ समिति की सिफारिश के आधार पर, भारत के राष्ट्रपति ने 1954 में एक अधिसूचना जारी की और भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले नागरिक पुरस्कारों का गठन किया। भारत सरकार ने दो नागरिक पुरस्कारों का गठन किया : भारत रत्न और पद्म पुरस्कार।
भारत रत्न किसी भारतीय या विदेशी को कला, साहित्य और विज्ञान को आगे बढ़ाने में असाधारण सेवा और उच्चतम स्तर की सार्वजनिक सेवा की मान्यता के लिए दिया जाता है। प्रधान मंत्री भारत के राष्ट्रपति को भारत रत्न सम्मान के पात्र लोगों के नाम की सिफारिश करते हैं।
केवल दो विदेशियों, पाकिस्तान के खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें सीमांत गांधी के नाम से भी जाना जाता है और दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। खान अब्दुल गफ्फार खान को 1987 में और मंडेला को 1990 में यह पुरस्कार प्रदान किया गया था।
पद्म पुरस्कार की स्थापना 1954 में भारत रत्न के साथ की गई थी। 1954 में पद्म पुरस्कार की तीन श्रेणियां थीं: पहला वर्ग, दूसरा वर्ग और तीसरा वर्ग। बाद में 1955 में इनका नाम बदलकर पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री कर दिया गया।
पद्म पुरस्कार की श्रेणियाँ
पद्म विभूषण: यह सरकारी कर्मचारियों या अन्य किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी क्षेत्र में असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाता है।
पद्म भूषण: यह सरकारी कर्मचारियों या अन्य किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी क्षेत्र में उच्च क्रम की विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाता है।
पद्म श्री: यह सरकारी कर्मचारियों या अन्य किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाता है।
डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को छोड़कर, सरकारी कर्मचारी, जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में काम करने वाले लोग भी शामिल हैं, इन पुरस्कारों के लिए पात्र नहीं हैं।
प्रतिवर्ष दिए जाने वाले ये पुरस्कार विवादास्पद भी रहे हैं। पुरस्कार के आलोचकों का तर्क है कि ये पुरस्कार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18(1) का उल्लंघन हैं।
संविधान के अनुच्छेद 18(1) में कहा गया है, "कोई भी उपाधि, जो सैन्य या शैक्षणिक विशिष्टता न हो, राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी"।
आलोचकों का तर्क है कि ये पुरस्कार, वास्तव में, उपाधियाँ हैं जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 18 द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। उनका यह भी तर्क है कि ये पुरस्कार हमेशा योग्यता पर आधारित नहीं होते हैं और सरकार इन पुरस्कारों को प्राप्त करने वाले व्यक्ति की योग्यता या प्रतिष्ठा को जांच करने के लिए हमेशा योग्य नहीं है।
1969 में, आचार्य जे.बी. कृपलानी ने इन पुरस्कारों को समाप्त करने के लिए लोकसभा में एक निजी सदस्य विधेयक भी पेश किया था ।
केंद्र सरकार द्वारा यह पुरस्कार दो बार निलंबित किया जा चुका है। 1977 में सत्ता में आई जनता पार्टी सरकार ने 1977 में यह पुरस्कार रद्द कर दिया, और 1978 और 1979 में कोई पुरस्कार नहीं दिया गया।
1980 में सत्ता में आई इंदिरा गांधी सरकार ने फिर से इस पुरस्कार को शुरू किया।
1993-1997 में पुरस्कारों को फिर से निलंबित कर दिया गया जब उनकी संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए मध्य प्रदेश और केरल के उच्च न्यायालयों में मामले दायर किए गए। बाद में ये मामले उच्च न्यायालयों से उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित किये गये।
सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने बालाजी राघवन/एस.पी. आनंद बनाम भारत संघ 1996 केस में अपना फैसला देते हुए माना कि ये पुरस्कार संविधान के अनुच्छेद 18 के अर्थ के तहत उपाधि नहीं थे। राष्ट्रीय पुरस्कार संविधान के प्रावधानों द्वारा गारंटीकृत समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, भारत सरकार ने 1998 से सालाना ये नागरिक पुरस्कार देना फिर से शुरू किया।
नागरिक पुरस्कार कोई उपाधि नहीं है, और इसे उपाधियों का रूप देने के लिए पुरस्कारों के नाम के साथ प्रत्यय या उपसर्ग के रूप में नहीं जोड़ा जा सकता है।
इन्हें पुरस्कार विजेता द्वारा लेटरहेड, निमंत्रण कार्ड, पोस्टर, किताबें आदि पर शीर्षक के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है।
प्रतिवर्ष कितने लोगों को ये पुरस्कार दिये जा सकते हैं, इसकी कोई सीमा नहीं है।