केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए 129वां संविधान संशोधन विधेयक 2024 और ‘केंद्र शासित प्रदेश संशोधन विधेयक 2024’ लोकसभा में पेश किया। संविधान संशोधन विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश संशोधन विधेयक में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा तथा केंद्र शासित प्रदेशों (पुडुचेरी, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर) की विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने का प्रावधान है।
लोकसभा में मतदान के बाद विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया जो विधेयक पर व्यापक चर्चा कर अपने सुझाव संसद को पेश करेगी। संयुक्त संसदीय समिति में दोनों ,लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य क्रमश: 2:1 के अनुपात में शामिल होंगे।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली ‘एक साथ चुनाव संबंधी उच्च स्तरीय समिति’ की सिफारिश को सरकार द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा यह विधेयक लोकसभा में पेश किया गया है ।
भारत सरकार द्वारा 2 सितंबर 2023 को रामनाथ कोविंद समिति का गठन किया गया था और इसने 14 मार्च 2024 को सरकार को अपनी सिफारिशें सौंपी थीं।
129वें संविधान संशोधन विधेयक के प्रावधान
129वें संविधान संशोधन विधेयक का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 82, 83, 172 और 327 में संशोधन करना है।
अनुच्छेद 82 में संशोधन किया जाएगा और अनुच्छेद 82 क, खंड 2,3,4,5,6 और 7 को पेश किया जाएगा।
प्रस्तावित संशोधन इस प्रकार हैं;
अनुच्छेद 812 (क)- राष्ट्रपति नवगठित लोक सभा की बैठक के पहले दिन अधिसूचना जारी करेंगे और उस तिथि को नियत तिथि कहा जाएगा।
अनुच्छेद 83 में संशोधन किया जाएगा और खंड 3,4,5 और 7 को शामिल किया जाएगा।
नए शामिल किए गए खंड के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं;
अनुच्छेद 172 में संशोधन किया जाएगा और खंड 1क, 3,4 और 5 को शामिल किया जाएगा। नए शामिल किए गए खंड के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं;
अनुच्छेद 327 में संशोधन किया जाएगा और “निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन” शब्दों के बाद “एक साथ चुनाव कराना” शब्द जोड़े जाएंगे।
129वां संविधान संशोधन विधेयक 'आम चुनाव' और मध्यावधि चुनाव को परिभाषित करता है।
आम चुनाव से तात्पर्य पूर्ण पांच वर्ष की अवधि के लिए नई लोकसभा और विधानसभाओं के गठन के लिए चुनाव से है।
मध्यावधि चुनाव से तात्पर्य लोकसभा या राज्य विधानसभा के समय से पहले भंग होने के कारण क्रमशः नई लोकसभा या राज्य विधानसभा के गठन के लिए होने वाले चुनाव से है।
26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद भारत में पहला आम चुनाव 1951-1952 में हुआ था जिसमे में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे।
फिर 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ चुनाव हुए। 1967 तक कांग्रेस पार्टी केंद्र और राज्य में सत्ता में थी। 1967 के चुनाव में विपक्षी दल कुछ राज्यों में सत्ता में आए।
हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण लोकसभा के साथ चुनाव कराने की परंपरा टूट गई।
उस समय लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की परंपरा थी, लेकिन 129वें संविधान संशोधन विधेयक में इसे कानून बनाने का प्रस्ताव है।
कई विपक्षी दल इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह संविधान के संघीय चरित्र के खिलाफ है।
सर्वोच्च न्यायालय ने ‘संघीय विशेषताओं’ को संविधान की मूल संरचना के रूप में उल्लेख किया है और केशवानंद भारती मामले 1973 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि संसद संविधान की मूल संरचना में संशोधन नहीं कर सकती है।
सरकार ने लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने को निम्नलिखित कारणों से उचित ठहराया है;
अलग-अलग चुनाव कराना महंगा और समय लेने वाला हो गया है।
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