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एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक: वह सब कुछ जो आपको जानना चाहिए

Utkarsh Classes Last Updated 18-12-2024
One Nation One Election Bill: Everything You Need to Know Bill and Act 13 min read

केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए 129वां संविधान संशोधन विधेयक 2024 और ‘केंद्र शासित प्रदेश संशोधन विधेयक 2024’ लोकसभा में पेश किया। संविधान संशोधन विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश संशोधन विधेयक में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा तथा केंद्र शासित प्रदेशों (पुडुचेरी, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर) की विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने का प्रावधान है।

लोकसभा में मतदान के बाद विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया जो विधेयक पर व्यापक चर्चा कर अपने सुझाव संसद को पेश करेगी। संयुक्त संसदीय समिति में दोनों ,लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य क्रमश: 2:1 के अनुपात में शामिल होंगे।

देश में एक राष्ट्र एक चुनाव

भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली ‘एक साथ चुनाव संबंधी उच्च स्तरीय समिति’ की सिफारिश को सरकार द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा यह विधेयक लोकसभा में पेश किया गया है ।

भारत सरकार द्वारा 2 सितंबर 2023 को रामनाथ कोविंद समिति का गठन किया गया था और इसने 14 मार्च 2024 को सरकार को अपनी सिफारिशें सौंपी थीं।

129वें संविधान संशोधन विधेयक के प्रावधान

129वें संविधान संशोधन विधेयक का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 82, 83, 172 और 327 में संशोधन करना है।

अनुच्छेद 82 से संबंधित प्रावधान

अनुच्छेद 82 में संशोधन किया जाएगा और अनुच्छेद 82 क, खंड 2,3,4,5,6 और 7 को पेश किया जाएगा।

प्रस्तावित संशोधन इस प्रकार हैं;

अनुच्छेद 812 (क)- राष्ट्रपति नवगठित लोक सभा की बैठक के पहले दिन अधिसूचना जारी करेंगे और उस तिथि को नियत तिथि कहा जाएगा।

  • नवगठित लोक सभा के पांच वर्ष के कार्यकाल की समाप्ति के बाद, सभी विधानसभाओं का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा, भले ही उनका पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा न हुआ हो।
  • चुनाव आयोग एक नई लोक सभा और एक नई राज्य विधानसभा का गठन करने के लिए लोक सभा और सभी राज्य विधानसभाओं का एक साथ चुनाव कराएगा।
  • यदि चुनाव आयोग को लगता है कि वह लोक सभा चुनाव के साथ-साथ किसी राज्य विधान सभा का स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं करा सकता है, तो वह राष्ट्रपति को उस राज्य में बाद की तिथि पर विधानसभा चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता है।
  • हालाँकि, यदि ऐसे राज्य में चुनाव बाद में होते हैं तो नवगठित राज्य विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही समाप्त हो जाएगा। 
  • चुनाव आयोग वह तिथि निर्दिष्ट करेगा जिस दिन ऐसी राज्य विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होगा।

अनुच्छेद 83 से संबंधित प्रावधान

अनुच्छेद 83 में संशोधन किया जाएगा और खंड 3,4,5 और 7 को शामिल किया जाएगा।

नए शामिल किए गए खंड के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं;

  • लोकसभा का कार्यकाल सदन की पहली बैठक की तारीख से पांच वर्ष का होगा।
  • यदि लोकसभा अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा करने से पहले भंग हो जाती है तो नए चुनाव होंगे।
  • लोकसभा में लंबित सभी विधेयक और प्रस्ताव सदन के विघटन के साथ ही समाप्त हो जाएंगे।
  • लोकसभा के लिए नए चुनाव के गठन के लिए चुनाव को मध्यावधि चुनाव कहा जाएगा।
  • नव निर्वाचित लोकसभा के पास पहले से भंग लोकसभा का शेष कार्यकाल होगा । (इसका मतलब है कि यदि पिछली लोकसभा समय से पहले भंग हो गई थी और उसके पांच साल के कार्यकाल के दो साल बाकी थे तो नव निर्वाचित लोकसभा का कार्यकाल केवल दो साल का होगा।)

अनुच्छेद 172 से संबंधित प्रावधान

अनुच्छेद 172 में संशोधन किया जाएगा और खंड 1क, 3,4 और 5 को शामिल किया जाएगा। नए शामिल किए गए खंड के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं;

  • अनुच्छेद 172 खंड 1क- राज्य विधानसभा का कार्यकाल सदन की पहली बैठक की तारीख से पांच वर्ष का होगा।
  • यदि विधानसभा अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा करने से पहले भंग हो जाती है तो नए चुनाव होंगे।
  • विधानसभा में लंबित सभी विधेयक और प्रस्ताव सदन के विघटन के साथ ही समाप्त हो जाएंगे।
  • नई विधानसभा के गठन के लिए होने वाले चुनाव को मध्यावधि चुनाव कहा जाएगा।
  • नव निर्वाचित विधानसभा के पास पहले से भंग विधानसभा का शेष कार्यकाल होगा।

अनुच्छेद 327 से संबंधित प्रावधान

अनुच्छेद 327 में संशोधन किया जाएगा और “निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन” शब्दों के बाद “एक साथ चुनाव कराना” शब्द जोड़े जाएंगे।

आम चुनाव और मध्यावधि चुनाव

129वां संविधान संशोधन विधेयक 'आम चुनाव' और मध्यावधि चुनाव को परिभाषित करता है। 

आम चुनाव से तात्पर्य पूर्ण पांच वर्ष की अवधि के लिए नई लोकसभा और विधानसभाओं के गठन के लिए चुनाव से है। 

मध्यावधि चुनाव से तात्पर्य लोकसभा या राज्य विधानसभा के समय से पहले भंग होने के कारण क्रमशः नई लोकसभा या राज्य विधानसभा के गठन के लिए होने वाले चुनाव से है।

भारत में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव

26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद भारत में पहला आम चुनाव 1951-1952 में हुआ था जिसमे में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। 

फिर 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ चुनाव हुए। 1967 तक कांग्रेस पार्टी केंद्र और राज्य में सत्ता में थी। 1967 के चुनाव में विपक्षी दल कुछ राज्यों में सत्ता में आए। 

हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण लोकसभा के साथ चुनाव कराने की परंपरा टूट गई। 

उस समय लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की परंपरा थी, लेकिन 129वें संविधान संशोधन विधेयक में इसे कानून बनाने का प्रस्ताव है। 

कई विपक्षी दल इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह संविधान के संघीय चरित्र के खिलाफ है। 

सर्वोच्च न्यायालय ने ‘संघीय विशेषताओं’ को संविधान की मूल संरचना के रूप में उल्लेख किया है और केशवानंद भारती मामले 1973 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि संसद संविधान की मूल संरचना में संशोधन नहीं कर सकती है।

एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए सरकार का तर्क

सरकार ने लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने को निम्नलिखित कारणों से उचित ठहराया है;

अलग-अलग चुनाव कराना महंगा और समय लेने वाला हो गया है।

  • चुनाव से ठीक पहले आदर्श आचार संहिता लागू होने से प्रशासन और विकास परियोजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि सरकार इस अवधि के दौरान नई परियोजनाओं की घोषणा नहीं कर सकती।
  • इससे प्रशासन का सामान्य कामकाज भी बाधित होता है, और  सामान्य जन-जीवन भी  बाधित होता है।
  • सरकारी कर्मचारियों और उनकी अन्य सरकारी मशीनरी को चुनाव कराने में लगा दिया जाता है, जिससे सरकारी विभागों के अन्य कार्य बाधित होते हैं।

 

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FAQ

उत्तर: भारत के पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद

उत्तर: 129वां संविधान संशोधन विधेयक 2024.

उत्तर: केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल

उत्तर: चार बार; 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में
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