8 मई 2025 को तमिलनाडु के कट्टुपल्ली स्थित एलएंडटी शिपयार्ड में आयोजित एक समारोह में पहला ‘अर्नाला’ श्रेणी का एंटी सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट (एएसडब्लू एसडब्ल्यूसी) आधिकारिक तौर पर भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया।
अर्नाला श्रेणी का एएसडब्लू एसडब्ल्यूसी कोलकाता स्थित रक्षा शिपयार्ड, गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई) द्वारा सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर बनाया गया है, जिसमें 80 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री है।
भारतीय नौसेना की पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता को मजबूत करने के लिए, भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत भारत में 16 एएसडबल्यू एसडबल्यूसी के निर्माण की परियोजना शुरू की है।
स्वदेशी एएसडबल्यू एसडबल्यूसी ,सोवियत संघ में निर्मित अभय श्रेणी के कोरवेट की जगह लेगा, जिन्हें 1989 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।
एएसडबल्यू एसडबल्यूसी पोत पनडुब्बी विध्वंसक पोत हैं जो तटीय क्षेत्रों में उथले पानी में दुश्मन की पनडुब्बियों का शिकार करते हैं।
इन पोतों का उपयोग समुद्र में बारूदी सुरंगें बिछाने और कम तीव्रता वाले समुद्री अभियानों के लिए भी किया जाता है।
एएसडबल्यू एसडबल्यूसी पोत की हथियार प्रणाली- पनडुब्बियों का शिकार करने और उन्हें नष्ट करने के लिए इन पोतों में हल्के टॉरपीडो, पनडुब्बी रोधी रॉकेट, पनडुब्बी रोधी बारूदी सुरंगें, 30 मिमी की नौसेना सतह की तोप और ऑप्ट्रॉनिक नियंत्रण प्रणालियों के साथ दो 16.7 मिमी की स्थिर रिमोट कंट्रोल बंदूकें लगी हुई हैं।
इन पोतों में चुपके से छिपने की क्षमता है और ये पनडुब्बियों का पता लगाने के लिए अत्यधिक उन्नत सोनार से लैस हैं।
ये पोत अधिकतम 25 नॉट प्रति घंटे की गति प्राप्त कर सकते हैं।
इन पोतों में 57 चालक दल के सदस्य रह सकते हैं।