प्रतिष्ठित भारतीय वन्यजीव संरक्षणवादी और जीवविज्ञानी असीर जवाहर थॉमस जॉनसिंह, जिन्हें ए जे टी जॉन सिंह के नाम से भी जाना जाता था का 7 जून 2024 को बेंगलुरु, कर्नाटक में निधन हो गया। ए जे टी जॉन सिंह 78 वर्ष के थे।
एक साहसी पर्यावरण कार्यकर्ता ए जे टी जॉन्सिंग की मृत्यु को भारत में संरक्षण गतिविधि के लिए एक बड़ी क्षति के रूप में देखा जा रहा है।
ए जे टी जॉनसिंह का जन्म तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के नंगुनेरी में हुआ था। उनका जन्मस्थान पश्चिमी घाट में स्थित है, जो विभिन्न प्रकार के वन्य जीवन वाला एक सदाबहार जंगल है। उनका जन्म एक कृषक परिवार में हुआ था। उन्हें बचपन से ही प्रकृति और वन्य जीवन के प्रति लगाव और जुनून था ।
ए जे टी जॉनसिंह बचपन से ही कर्नल एडवर्ड जेम्स 'जिम' कॉर्बेट की कहानियों से बहुत प्रभावित थे, जो भारतीय वन्य जीवन पर आधारित थीं।
वह वन्यजीव और उसके प्रबंधन पर शोध के लिए देश के प्रमुख संस्थान, देहरादून में स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) में एक संकाय सदस्य के रूप में शामिल हुए और भारतीय वन्यजीव संस्थान में वन्यजीव विज्ञान संकाय के डीन के रूप में सेवानिवृत्त हुए।
अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, वह वन्यजीव संरक्षण प्रयासों में सक्रिय थे और प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया और कॉर्बेट फाउंडेशन जैसे विभिन्न संरक्षण संगठनों से जुड़े हुए थे।
उन्हें देश में बाघों के कई आवासों के बारे में पता था और वे इसके विशेषज्ञ थे । उन्होंने पश्चिमी घाट में स्थित कलक्कड़-मुंडनथुराई टाइगर रिजर्व (तमिलनाडु) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने राजस्थान में सरिस्का बाघ अभयारण्य में सभी बाघों की मौत का भी खुलासा किया था ।
उनका शोध मुख्य रूप से एशियाई हाथी, गोरल, हिमालयी आइबेक्स, नीलगिरि तहर, स्लॉथ भालू, एशियाई शेर, ग्रिजल्ड विशाल गिलहरी और नीलगिरि लंगूर पर केंद्रित था।
ए जे टी जॉनसिंह ने वन्यजीव संरक्षण पर 70 से अधिक वैज्ञानिक पत्र और 80 से अधिक लोकप्रिय लेख लिखे हैं।
वन्यजीव संरक्षण और पारिस्थितिकी में ए जे टी जॉनसिंह के अग्रणी प्रयास ने उन्हें कई पुरस्कार और मान्यताएँ दिलाईं।
उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार -पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
उन्हें सोसायटी फॉर कंजर्वेशन बायोलॉजी की ओर से सरकार के लिए 2004 के विशिष्ट सेवा पुरस्कार, 2005 में एबीएन एमरो सैंक्चुअरी लाइफटाइम वाइल्डलाइफ सर्विस अवार्ड और भारतीय वन्यजीवों की आजीवन सेवा के लिए कार्ल जीस वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन अवार्ड 2004 से सम्मानित किया गया था।