भारत दुनिया भर के उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो गया है, जिन्होंने मैक 6 (ध्वनि की गति से छह गुना) या उससे अधिक की गति वाली लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइलों का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने 16 नवंबर, 2024 को ओडिशा के तट पर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
रूस दुनिया का पहला देश है जिसने 2022 में यूक्रेन के खिलाफ अपनी हाइपरसोनिक मिसाइल किन्झाल का इस्तेमाल किया था।
विश्व में भारत के अलावा , रूस, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी हाइपरसोनिक मिसाइलों का परीक्षण किया है। हाल ही में उत्तर कोरिया ने एक परीक्षण करने का दावा किया था, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की जा सकी है।
फ़्रांस, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ईरान और इज़राइल भी हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टम विकसित करने की परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं।
डीआरडीओ द्वारा परीक्षण की गई हाइपरसोनिक मिसाइल को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल कॉम्प्लेक्स, हैदराबाद की प्रयोगशालाओं द्वारा डीआरडीओ और निजी क्षेत्र की कंपनियों की प्रयोगशालाओं के साथ साझेदारी में विकसित किया जा रहा है।
मिसाइल की मारक दूरी 1500 किलोमीटर है।
हाइपरसोनिक मिसाइल एक प्रकार की बैलिस्टिक मिसाइल होती हैं जिनकी न्यूनतम गति मैक 5 (लगभग 6,200 किलोमीटर प्रति घंटा) होती है। ये सुपरसोनिक मिसाइलों से अलग हैं, जो एक प्रकार की बैलिस्टिक मिसाइल हैं और जिनकी गति 1 मैक या उससे अधिक है।
दुनिया भर में दो तरह की हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणालियाँ विकसित की जा रही हैं।
बैलिस्टिक मिसाइल तंत्र की तरह, हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन को रॉकेट का उपयोग करके प्रक्षेपित किया जाता है। रॉकेट,पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में पहुँचता है और फिर पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश करता है और 27 किमी प्रति घंटे की गति से लक्ष्य की ओर बढ़ता है।
हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन के समान है। अंतर यह है कि पुनः प्रवेश चरण के दौरान, क्रूज़ मिसाइल लक्ष्य को भेदने के लिए स्क्रैमजेट इंजन (एक वायु-श्वास इंजन) का उपयोग करती है।
पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों का एक निर्धारित उड़ान पथ होता है और इसे बदलने की उनकी क्षमता सीमित होती है, जिससे वे वायु रक्षा प्रणाली के लिए एक आसान लक्ष्य हो जाते है।
हाइपरसोनिक मिसाइलें अत्यधिक गतिशील हैं। इसका मतलब है कि इन्हें आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है और ये उड़ान के दौरान अपनी दिशा बदलने (पैंतरेबाज़ी) की क्षमता रखते हैं। इसलिए, वायु रक्षा प्रणालियों के लिए उनका पता लगाना और उन्हें नष्ट करना मुश्किल हो जाता है।
दूसरा अंतर गति का है।
वे निचले प्रक्षेप पथ पर उड़ते हैं और उड़ान के दौरान प्रक्षेप पथ को बदलने की क्षमता रखते हैं, जिससे ज़मीन आधारित रडार द्वारा उनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
क्योंकि वे बहुत तेज़ गति से यात्रा करते हैं, वर्तमान वायु रक्षा प्रणाली के लिए आने वाली हाइपरसोनिक मिसाइल का पता लगाना और उसका जवाब देना मुश्किल होगा।
उनकी उच्च गति और उड़ान में अपने प्रक्षेप पथ को बदलने की क्षमता के कारण, उन्हें दुश्मन के इलाके में गहराई तक मार करने के लिए पहली पसंद के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
इससे भारतीय रक्षा बल को दुश्मन की रणनीतिक परमाणु और पारंपरिक संपत्तियों को पहली हमले में नष्ट करना की क्षमता विकसित होगी।
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