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समानांतर सिनेमा के दिग्गज फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल का निधन

Utkarsh Classes Last Updated 07-02-2025
Doyen of Parallel Cinema filmmaker Shyam  Benegal passes away Death 5 min read

भारतीय समानांतर सिनेमा के दिग्गज श्याम बेनेगल का 23 दिसंबर 2024 को मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 90 वर्ष के थे और गंभीर गुर्दा विकार से पीड़ित थे। अंकुर’ और ‘मंथन’ जैसी फिल्मों के जनक श्याम बेनेगल को सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक और गोविंद निहालिनी के साथ भारत में समानांतर सिनेमा आंदोलन के अग्रणी माने जाते है।

श्याम बेनेगल का फ़िल्मी करियर

श्याम बेनेगल का जन्म 1934 में तिरुमालागिरी, जो अब तेलंगाना में है,में हुआ था। उनके पिता एक फ़ोटोग्राफ़र थे, जो लघु फ़िल्में भी बनाते थे।

बारह वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने पिता श्रीधर बेनेगल द्वारा दिए गए कैमरे पर अपनी पहली फ़िल्म बनाई।

उन्होंने एक विज्ञापन एजेंसी में कॉपीराइटर के रूप में अपना करियर शुरू किया और 1962 में गुजराती में अपनी पहली डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म ‘घेर बैठा गंगा (गंगा दरवाज़े पर)’ बनाई।

बाद में उन्होंने फ़िल्म डिवीज़न ऑफ़ इंडिया के लिए वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) बनाना शुरू किया और उनकी पहली फ़ीचर फ़िल्म अंकुर थी जो शबाना आज़मी की पहली फ़िल्म थी

अपने शानदार करियर के दौरान, उन्होंने फ़ीचर फ़िल्में, वृत्तचित्र, टेलीविज़न शो आदि बनाए।

फ़िल्में

  • अंकुर, मंथन, सूरज का सातवाँ घोड़ा, भूमिका, जुनून, ज़ुबैदा, सरदारी बेगम और मम्मो।

बायोपिक फ़िल्में

  • द मेकिंग ऑफ़ द महात्मा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फ़ॉरगॉटन हीरो और उनकी आखिरी फ़िल्म 2023 की जीवनी पर आधारित मुजीब: द मेकिंग ऑफ़ ए नेशन।
  • बांग्लादेश के राष्ट्रपिता और उसके पहले राष्ट्रपति मुजीब उर रहमान पर आधारित ‘मुजीब’ बायोपिक भी उनकी आखिरी फ़िल्म थी।

टेलीविज़न शो

  • दूरदर्शन के लिए, उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया का रूपांतरण भारत एक खोज और संविधान निर्माण पर 10-भाग का शो संविधान बनाया।

शिक्षण 

  • श्याम बेंगल ने 1966 से 1973 के बीच पुणे स्थित भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफ़टीआईआई) में भी पढ़ाया।
  • वे 1980-83 और फिर 1989-92 में एफ़टीआईआई  के अध्यक्ष रहे।

श्याम बेनेगल के लिए पुरस्कार और सम्मान

  • श्याम बेनेगल ने अपने शानदार फिल्मी करियर के दौरान कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए।
  • उन्हें 2005 में भारत के सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • उन्हें 18 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले।
  • उन्हें 1991 में भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
  • उन्हें 1976 में भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
  • 2009 में वे 31वें मास्को अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में जूरी के सदस्य थे।

कान्स फ़िल्म महोत्सव

गुजरात के आणंद में वर्गीस कुरियन के दुग्ध सहकारी आंदोलन पर आधारित उनकी फ़िल्म मंथन, जिसमें स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह और गिरीश कर्नाड ने अभिनय किया था, को पुनर्स्थापित किया गया और 2024 में कान्स फ़िल्म महोत्सव केई  कान्स क्लासिक्स सेगमेंट में प्रदर्शित किया गया था।

समानांतर सिनेमा के बारे में

समानांतर सिनेमा, बॉलीवुड जैसे मुख्यधारा के सिनेमा के विपरीत होता है, जो गीत और नृत्य से भरी एक काल्पनिक दुनिया को चित्रित करता है।

समानांतर सिनेमा समाज द्वारा सामना किए जाने वाले वास्तविक मुद्दों जैसे गरीबी, जातिगत भेदभाव, लैंगिक असमानता, वर्ग संघर्ष आदि को चित्रित करता है। 

यह फिल्म समाज की समस्याओं के बारे में सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिए बनाई गई है।

सत्यजीत रे औए उनकी फिल्म  ‘पाथेर पांचाली’ के साथ भारत में समानांतर सिनेमा का अग्रदूत माना जाता है। श्याम बेनेगल की अंकुर फिल्म को समानांतर सिनेमा में एक नया मील का पत्थर माना जाता है।

अन्य उल्लेखनीय समानांतर सिनेमा के हस्तियां मृणाल सेन, गोविंद निहलानी, ऋत्विक कुमार घटक हैं।

 

FAQ

उत्तर: वे एक फिल्म निर्माता थे

उत्तर: श्याम बेनेगल। यह उनकी आखिरी फिल्म भी थी।

उत्तर: 2005
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