अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे राष्ट्रपति पद के कार्यकाल के पहले दिन,अपने चुनावी वादे को लागू करने के लिए कई कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए। 20 जनवरी 2025 को हस्ताक्षरित कार्यकारी आदेश में कई विवादास्पद मुद्दे शामिल हैं और कई आदेश पिछले जो बिडेन प्रशासन के फैसलों को उलट देते है।
इस आदेश में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौता 2015 से अमेरिका की निकासी शामिल है। इसके अलावा एक आदेश में अमरीवा में पैदा हुए विदेशी माता-पिता के बच्चों को स्वतः नागरिकता के अधिकार को भी समाप्त करता है।
आदेश में मैक्सिकन सीमा पर आपातकाल की स्थिति की घोषणा भी शामिल है ताकि मैक्सिकन सीमा पार करके अमरीका में शरण मांगने वाले अवैध प्रवासियों पर अंकुश लगाया जा सके। राष्ट्रपति के कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर करने के 12 महीने बाद अंतरराष्ट्रीय समझौतों से अमेरिका की निकासी लागू होगी।
डोनाल्ड ट्रम्प ने 2020 में राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल में कोविड-19 महामारी से निपटने में डबल्यूएचओ की अक्षमता के कारण डब्ल्यूएचओ से अमेरिका सदस्यता समाप्त करने का आदेश दिया था।
लेकिन प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही वे अगला राष्ट्रपति चुनाव हर गए और जो बिडेन की सरकार ने इस आदेश को निरस्त कर दिया था।
राष्ट्रपति के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रम्प ने फिर से डब्ल्यूएचओ से अमेरिका सदस्यता समाप्त करने का आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं ।
अमेरिका सदस्यता समाप्त करने का कारण
डबल्यूएचओ में योगदान
संयुक्त राज्य अमेरिका डबल्यूएचओ में सबसे बड़ा योगदानकर्ता देश/संस्था है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के कदम का प्रभाव
डोनाल्ड ट्रम्प ने 2015 के पेरिस जलवायु समझौते से संयुक्त राज्य अमेरिका की वापसी के लिए एक आदेश पर भी हस्ताक्षर किए।
अमेरिका अब ईरान, यमन और लीबिया के साथ इस समझौते से बाहर रहने वाले देशों में शामिल हो जाएगा।
यह दूसरी बार है जब ट्रम्प ने पेरिस समझौते से वापसी की आदेश पारित किया है।
2017 में, डोनाल्ड ट्रम्प ने संयुक्त राज्य अमेरिका को पेरिस समझौते से अलगा कर लिया था, लेकिन जब जो बिडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो संयुक्त राज्य अमेरिका फरवरी 2021 में फिर से इसमें शामिल हो गया।
पेरिस समझौते के बारे में
पेरिस समझौता एक कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है जो जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए सदस्य देशों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने का प्रयास करता है।
यह पूर्व-औद्योगिकीकरण के स्तर की तुलना में वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि को सीमित करने का भी प्रयास करता है।
चीन दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है, उसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत का स्थान है।
समझौते से वापसी का कारण
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