केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में 19 सितंबर 2023 को ‘महिला आरक्षण विधेयक’ प्रस्तुत किया। इसे 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' नाम दिया गया है।
संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन नई संसद भवन में महिलाओं से जुड़ा ऐतिहासिक विधेयक प्रस्तुत किया गया।
- इस विधेयक में लोकसभा और विधानसभा में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है। अर्थात इस विधेयक के अधिनियम बनने पर लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभाओं में हर तीसरी सदस्य महिला होगी।
विधेयक से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य:
128वें संविधान संशोधन विधेयक:
- इस विधेयक में लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई है। इसे 128वें संविधान संशोधन विधेयक के तहत पेश किया गया है।
- इस संशोधन के बाद लोकसभा में एक तिहाई भागीदारी महिलाओं की होगी। इस विधेयक से महिला सशक्तिकरण को मजबूती मिलने के साथ ही आधी आबादी के प्रतिनिधित्व को और भी बढ़ावा मिलेगा।
महिलाओं की बढ़ेगी भागीदारी:
- इस विधेयक के अधिनियम बनने के बाद लोकसभा में कम से कम 181 महिला सांसद चुनकर आएंगी, जबकि वर्तमान में सदन में महिला सांसदों की संख्या मात्र 82 है।
राज्य विधानसभाओं में भी लागू होगा प्रावधान:
- लोकसभा और देश के सभी राज्यों के विधानसभाओं में भी ये बदलाव लागू होगा। जैसे लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित हो जाएंगी। ठीक उसी तरह से सभी राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं की 33 प्रतिशत सीटें अनिवार्य हो जाएगी।
- इसके तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटित सीटों में भी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित हो जाएंगी।
- इस विधेयक में संविधान के अनुच्छेद- 239AA के तहत राजधानी दिल्ली की विधानसभा में भी महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।
15 वर्षों तक आरक्षण का प्रावधान:
- इस विधेयक के पास होने के बाद लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान 15 वर्षों तक की गई है।
- इसके साथ ही इस विधेयक में प्रावधान है कि सीटों का आवंटन रोटेशन प्रणाली के तहत की जाएगी।
विधेयक में आरक्षित वर्ग की महिलाओं के लिए प्रावधान:
- अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) महिला:
- एससी-एसटी महिलाओं को अलग से आरक्षण नहीं दिया गया है। आरक्षण की ये व्यवस्था आरक्षण के भीतर ही की गई है।
- अर्थात, लोकसभा और विधानसभाओं में जितनी सीटें एससी-एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, उन्हीं में से 33% सीटें महिलाओं के लिए होंगी।
- वर्तमान में लोकसभा में 84 सीटें एससी और 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। विधेयक के कानून बनने के बाद 84 एससी सीटों में से 28 सीटें एससी महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी। इसी तरह 47 एसटी सीटों में से 16 एसटी महिलाओं के लिए होंगी।
- ओबीसी महिला:
- लोकसभा में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। एससी-एसटी की आरक्षित सीटों को हटा देने के बाद लोकसभा में 412 सीटें बचती हैं।
- इन सीटों पर ही सामान्य के साथ-साथ ओबीसी के उम्मीदवार भी लड़ते हैं। इस तरह से 137 सीटें सामान्य और ओबीसी वर्ग की महिलाओं के लिए होंगी।
अनारक्षित सीटों पर लड़ सकेंगी महिलाएं?
- इस विधेयक के अनुसार जो सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित नहीं होंगी, वहां से भी महिलाएं चुनाव लड़ सकती हैं। इस विधेयक को इसलिए लाया गया है ताकि लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ सके।
राज्यसभा और राज्य विधान परिषद में महिला आरक्षण की व्यवस्था नहीं:
- राज्यसभा और जिन राज्यों में विधान परिषद की व्यवस्था है, वहां महिला आरक्षण लागू नहीं होगा। अगर ये विधेयक कानून बनता है तो ये सिर्फ लोकसभा और विधानसभाओं पर ही लागू होगा।
कब से लागू होगा विधेयक?
- इस विधेयक के अधिनियम बन जाने पर भी अभी इसे लागू होने में समय लग सकता है। इस सन्दर्भ में बताया जा रहा है कि परिसीमन के बाद ही इस कानून को लागू किया जा सकेगा।
- 2026 के बाद देश में लोकसभा सीटों का परिसीमन होना है। इस परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण लागू होगा। अर्थात, 2024 के लोकसभा चुनाव के समय ये कानून प्रभावी नहीं होगा।
संसद-विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व:
- संसद और अधिकतर विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15 प्रतिशत से कम है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 19 विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 10 प्रतिशत से भी कम है।
वर्तमान में महिला सांसदों की संख्या:
- वर्तमान लोकसभा में 543 सदस्यों में से महिलाओं की संख्या 78 है, जो 15 प्रतिशत से भी कम है। राज्यसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 14 प्रतिशत है।
विभिन्न विधानसभाओं में महिला विधायकों की प्रतिशत:
- कई विधानसभाओं में महिलाओं की भीगीदारी 10 प्रतिशत से भी कम है। जैसे गुजरात विधानसभा में 8.2 प्रतिशत महिला विधायक हैं जबकि हिमाचल प्रदेश विधानसभा में सिर्फ एक ही महिला विधायक है। इसके साथ ही हरियाणा विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत है।
- जिन विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से अधिक है:
- बिहार (10.70 प्रतिशत),
- छत्तीसगढ़ (14.44 प्रतिशत),
- झारखंड (12.35 प्रतिशत),
- पंजाब (11.11 प्रतिशत),
- राजस्थान (12 फीसदी),
- उत्तराखंड (11.43 प्रतिशत),
- उत्तर प्रदेश (11.66 प्रतिशत),
- पश्चिम बंगाल ( 13.70 प्रतिशत) और
- दिल्ली (11.43 प्रतिशत) है।
लगभग तीन दशकों से रुका है यह विधेयक:
- महिला आरक्षण विधेयक पिछले 27 वर्षों से लटका हुआ है। इसे पहली बार 12 सितंबर 1996 को एचडी देवगौड़ा की सरकार ने प्रस्तुत किया था।
- हालांकि, उस वक्त ये विधेयक पास नहीं हो सका था। इसके बाद भी लगभग सभी सरकारों ने इसे कानून का रूप देने की कोशिश की, परन्तु असफल रहे।