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सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी वर्ग के आरक्षण में उप-कोटा की अनुमति दी

Utkarsh Classes Last Updated 07-02-2025
Supreme Court permits sub-quota in the reservation of SC/ST Category Supreme Court 7 min read

एक महत्वपूर्ण फैसले में, दविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली उच्चतम न्यायालय की सात-न्यायाधीशों की पीठ ने 6:1 के बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्य सरकार अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची के भीतर आरक्षण प्रयोजनों के लिए उप-वर्गीकरण बना सकती है। 

1 अगस्त 2024 को दिए गए सात-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले ने 2004 के ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में पहले पांच-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को पलट दिया।

ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एससी/एसटी सूची एक समरूप समूह है और इसमें कोई उप-वर्गीकरण नहीं हो सकता है।

वर्तमान में  सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति को 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है।

अनुच्छेद 341 और अनुच्छेद 342 का प्रावधान और सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 

संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 परिभाषित करते हैं कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में कौन अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति है।

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 341 भारत के राष्ट्रपति को राज्य के राज्यपाल के परामर्श से अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने के लिए नस्ल, जाति या जनजाति को निर्दिष्ट करने की शक्ति देता है।
  • इसी प्रकार, अनुच्छेद 342 के तहत, राष्ट्रपति के पास राज्य के राज्यपाल के परामर्श से जनजातियों और आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के लिए निर्दिष्ट करने की शक्ति है।
  • संसद के पास किसी भी जाति या जनजाति को क्रमशः अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने या बाहर करने की शक्ति है।
  • ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि राज्य सरकार के पास अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में जाति को शामिल करने या बाहर करने की शक्ति नहीं है। 
  • राष्ट्रपति के पास केवल अधिसूचना जारी करने की शक्ति है और किसी जाति या जनजाति को शामिल करने या बाहर करने की शक्ति केवल संसद के पास है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समरूप समूह हैं और इन्हें उप-कोटा में विभाजित नहीं किया जा सकता है।

वर्तमान मामले की पृष्ठभूमि 

पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006, अनुसूचित जाति के बीच बाल्मीकि और मजहबी सिख समुदायों के लिए आरक्षण में पहली प्राथमिकता प्रदान करता है।  

बाल्मीकि और मजहबी सिख समुदाय पंजाब में सबसे पिछड़े समुदाय हैं।

इस अधिनियम को दविंदर सिंह ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। 

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 2010 में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 को असंवैधानिक करार दिया।  उच्च न्यायालय ने  ई वी चिन्नैया मामले में 2004 के उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला दिया था ।

उच्च न्यायालय के फैसले को  उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई और इसे पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ के पास भेजा गया।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि अनुसूचित जातियां एक सजातीय समूह नहीं थीं और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों में समानताएं थीं।

पांच सदस्यीय पीठ ने महसूस किया कि ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय  के फैसले की समीक्षा की जानी चाहिए। 

चूंकि ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य का फैसला पांच सदस्यीय पीठ द्वारा दिया गया था, इसलिए इसकी समीक्षा केवल सात सदस्यीय उच्च पीठ द्वारा की जा सकती है।

दविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया, जिसने फरवरी 2024 में मामले की सुनवाई शुरू की।

दविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में फैसले की मुख्य बातें

  • अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति एक सजातीय समूह नहीं है, और समुदायों के भीतर कुछ समूह अधिक पिछड़े हुए हैं।
  • अनुच्छेद 15 और 16 के तहत, राज्य सरकारों के पास एससी/एसटी सूची के भीतर अधिक पिछड़े समुदायों की एक उपश्रेणी बनाने की शक्ति है।
  • न्यायालय के पास एससी.एसटी समुदाय के भीतर किसी समुदाय को अधिक पिछड़े के रूप में पहचानने के राज्य के फैसले की जांच करने की शक्ति होगी। 
  • पांच न्यायाधीशों ने राय दी कि अन्य पिछड़ा वर्ग की तरह ही एससी/एसटी समुदाय में भी क्रीमी लेयर लागू की जानी चाहिए।

FAQ

उत्तर: दविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामला

उत्तर: ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामला

उत्तर: अनुच्छेद 341

उत्तर: अनुच्छेद 342
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