पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वामी दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती समारोह पर उनके जन्मस्थान मोरबी में टंकारा में आयोजित एक कार्यक्रम को वर्चुअली संबोधित किया।
स्वामी दयानंद का जन्म 12 फरवरी, 1824 को पश्चिमी भारतीय राज्य गुजरात के टंकारा शहर में हुआ था। मूल रूप से उनका नाम मूल शंकर था, उन्हें दयाराम के नाम से भी जाना जाता था।
आर्य समाज: स्वामी दयानंद ने 7 अप्रैल, 1875 को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। इस संगठन की स्थापना हिंदू धर्म के भीतर एक सुधार आंदोलन के रूप में की गई थी।
आर्य समाज के 10 सिद्धांत पारंपरिक हिंदू धर्म से अलग हैं, फिर भी वे वेदों पर आधारित हैं।
इन सिद्धांतों का उद्देश्य शारीरिक, आध्यात्मिक और सामाजिक सुधार के माध्यम से व्यक्तियों और समाज को आगे बढ़ाना है। स्वामी दयानंद का लक्ष्य कोई नया धर्म बनाना नहीं, बल्कि प्राचीन वेदों की शिक्षाओं को पुनर्जीवित करना था।
पुस्तकें: स्वामी दयानंद ने कई धार्मिक पुस्तकें लिखीं और प्रकाशित कीं, जिनमें प्रमुख हैं सत्यार्थ प्रकाश, वेद भाष्य, ऋग्वेदादि, भाष्य-भूमिका और संस्कार विधि।
साथ ही पत्रिका "आर्य पत्रिका" भी, जिसका उन्होंने संपादन किया।
जाति व्यवस्था: "वह मूर्ति पूजा, जाति व्यवस्था, कर्मकांड, भाग्यवाद, शिशुहत्या और दूल्हों की बिक्री के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने महिलाओं की मुक्ति और दलित वर्ग के उत्थान की भी वकालत की।
वेदों और हिंदू धर्म की सर्वोच्चता को बरकरार रखते हुए, उन्होंने इस्लाम और ईसाई धर्म का विरोध किया और अन्य संप्रदायों को हिंदू व्यवस्था में वापस लाने के लिए शुद्धि आंदोलन को बढ़ावा दिया।
स्वामी दयानंद सरस्वती का दृढ़ विश्वास था कि भारतीय समाज के उत्थान की इच्छा वैदिक शिक्षा के प्रसार के माध्यम से पूरी की जा सकती है।
शिक्षा: स्वामी दयानंद का सबसे महत्वपूर्ण योगदान गुरुकुल, लड़कियों के गुरुकुल और डीएवी कॉलेज थे। उनके प्रयासों ने लोगों को पश्चिमी शिक्षा के चंगुल से मुक्त कराया।
राजनीतिक योगदान: दयानंद सरस्वती का लोकतंत्र के विकास और राष्ट्रीय जागृति में महत्वपूर्ण योगदान था। वह स्वराज शब्द का प्रयोग करने वाले पहले व्यक्ति थे और राजनीतिक स्वतंत्रता उनके प्राथमिक उद्देश्यों में से एक थी।