रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए सरकार ने मिसाइल, रडार सहित कई उपकरणों हेतु 39125 करोड़ के किए पांच रक्षा समझौते किए हैं। यह करार 'मेक इन इंडिया' के तहत विभिन्न प्रकार के रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए किए गए हैं। जिनमें प्रमुखतः ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइलों, मिग-29 लड़ाकू विमानों के इंजन, रडार आदि शामिल हैं।
स्वदेश में ही रक्षा उपकरणों का होगा उत्पादन:
- 1 मार्च 2024 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और रक्षा सचिव गिरधर अरमाने की उपस्थिति में इन रक्षा सौदों पर हस्ताक्षर किए गए।
- पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच इन सौदों से चीन पर नकेल कसा जा सकेगा। स्वदेश में ही रक्षा उपकरणों का उत्पादन होने से विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी। रक्षा उपकरणों के लिए विदेश पर निर्भरता कम होगी।
ब्रह्मोस मिसाइलों की खरीद के लिए समझौता:
- पांच समझौते में से दो समझौते ब्रह्मोस मिसाइलों की खरीद के लिए ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (बीएपीएल) के साथ किए गए हैं।
- ब्रह्मोस मिसाइलों को खरीदने के लिए 19,518.65 करोड़ रुपये का समझौता किया गया है।
- भारतीय नौसेना के प्रशिक्षण आवश्यकताओं के लिए इन मिसाइलों का इस्तेमाल होगा। इस परियोजना से बड़ी संख्यां में लोगों को रोजगार मिलेगा।
- बीएपीएल के साथ किया गया दूसरा अनुबंध 988 करोड़ रुपये की लागत से -ब्रह्मोस से लैस पोत खरीदने के लिए बीएपीएल के साथ किया गया है।
- यह नौसेना इससे समुद्र या जमीन पर सुपरसोनिक गति से हमला कर सकती है। इस प्रोजेक्ट से सात-आठ सालों तक 60 हजार कार्यदिवस का रोजगार मिलेगा। ब्रह्मोस मिसाइलों को लद्दाख में भी तैनात करने की योजना है।
एचएएल से मिग-29 के लिए एयरो इंजन की खरीद समझौता:
- मिग-29 लड़ाकू विमानों के लिए आरडी-33 एयरो इंजन की खरीद के सौदे पर रक्षा क्षेत्र की प्रमुख सरकारी कंपनी हिदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ करार किए हैं। इस परियोजना की लागत 5,249.72 करोड़ रुपये होगी।
- एयरो इंजन का उत्पादन एचएएल के कोरापुट डिवीजन में किया जाएगा। ये इंजन मिग-29 में लगाए जाएंगें। इनका निर्माण रूस ओईएम की ट्रांसफर आफ टेक्नोलॉजी (टीओटी) लाइसेंस के जरिए होगा। भविष्य में भी इसकी मरम्मत और विस्तार में कोई दिक्कत नहीं होगी।
लार्सन एंड टूब्रो से खरीदे जाएंगे सीआईडब्ल्यूएस और रडार:
- लार्सन एंड टूब्रो लिमिटेड के साथ दो समझौते किये गए हैं। जिसके तहत 'क्लोज-इन वेपन सिस्टम' (सीआइडब्ल्यूएस) और उच्च क्षमता वाले रडार की खरीद की जाएगी। सीआइडब्ल्यूएस की खरीद पर 7,668.82 करोड़ रुपये और रडार की खरीद पर 5,700 करोड़ रुपये की लागत आएगी।
- क्लोज-इन हथियार प्रणाली कम दूरी की मिसाइलों और दुश्मन के विमानों का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने के लिए रक्षा युद्ध प्रणाली है।
निजी क्षेत्र से बनने वाली भारत में यह पहली रडार प्रणाली:
- पांच साल की इस परियोजना के दौरान हर साल 2400 लोग इस काम में लगेंगे। उच्च क्षमता वाले रडार में निगरानी के अत्याधुनिक फीचर हैं। यह वायुसेना की वायु रक्षा क्षमता को बढ़ाएगा।
- निजी क्षेत्र से बनने वाली भारत में यह पहली रडार प्रणाली होगी। इससे प्रति वर्ष पांच साल तक औसतन एक हजार लोगों को रोजगार मिलेगा।