रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने भारतीय नौसेना पोत (आईएनएस) कवरत्ती से स्वदेशी रूप से विकसित विस्तारित रेंज एंटी-सबमरीन रॉकेट (ईआरएएसआर) का अंतिम उपयोगकर्ता परीक्षण सफलतापूर्वक किया है।
डीआरडीओ के अनुसार, ईआरएएसआर के सफल उपयोगकर्ता परीक्षण अब पूरे हो चुके हैं और भारतीय नौसेना में शामिल होने के लिए तैयार हैं।
ईआरएएसआर का अंतिम उपयोगकर्ता परीक्षण 23 जून से 7 जुलाई 2025 तक INS कवरत्ती से किया गया था। डीआरडीओ ने ईआरएएसआर का पहला परीक्षण 3 अप्रैल, 2023 को नौसेना के निर्देशित मिसाइल विध्वंसक, आईएनएस चेन्नई से किया था।
ईआरएएसआर मौजूदा सोवियत युग के आरबीयू -6000 स्मर्च-2 प्रणाली का जगह लेगा, जो वर्तमान में भारतीय नौसेना के जहाजों पर तैनात है और जिसकी अधिकतम मारक क्षमता 5 किमी तक की है ।
ईआरएएसआर रॉकेट प्रणाली को डीआरडीओ की पुणे स्थित दो संस्था - आयुध अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान, और उच्च ऊर्जा सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला और नौसेना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला द्वारा स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और विकसित किया गया है।
रॉकेट लॉन्चर और रॉकेट दोनों का विकास भारत में ही किया गया है।
लॉन्चर और रॉकेट का निर्माण हैदराबाद स्थित सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारत डायनेमिक्स लिमिटेड
(बीडीएल ) और नागपुर स्थित निजी क्षेत्र की कंपनी सोलर डिफेंस एंड एयरोस्पेस लिमिटेड द्वारा किया गया है।
ईआरएएसआर रॉकेट प्रणाली को भारतीय नौसेना के युद्धपोतों के पास पानी के नीचे दुश्मन की पनडुब्बियों को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
इसकी न्यूनतम मारक क्षमता 500 मीटर और अधिकतम 8.9 किमी है।
यह रॉकेट डेप्थ चार्ज से लैस है जो दुश्मन की पनडुब्बी के पानी के नीचे छिपे होने की गहराई पर विस्फोट करता है।
यह रॉकेट एक दोहरी मोटर प्रणोदन प्रणाली से लैस है जो इसे कम या लंबी दूरी तक दागने में सक्षम बनाती है।
ईआरएएसआर प्रणाली एक रॉकेट या रॉकेटों की एक श्रृंखला दाग सकती है।
ईआरएएसआरप्रणाली के शामिल होने से भारतीय नौसेना की पनडुब्बी रोधी क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
डीआरडीओ के अध्यक्ष - डॉ. समीर वी. कामत