दक्षिण भारत के तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों के मध्य चल रहे कावेरी जल विवाद एक बार पुनः सुर्ख़ियों में आई है क्योंकि तमिलनाडु ने कर्नाटक द्वारा अपने जलाशय के जल से 24,000 क्यूबिक फीट प्रति सेकंड (क्यूसेक) का प्रवाह सुनिश्चित करने में हस्तक्षेप हेतु उच्चतम न्यायालयसे अपील किया है।
तमिलनाडु ने शीर्ष न्यायालय से कर्नाटक को कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के फरवरी 2007 के अनुसार सितंबर 2023 हेतु निर्धारित 36.76 टीएमसी (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) का प्रवाह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का भी आग्रह किया, जिसे वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने संशोधित किया था।
- कर्नाटक सरकार ने 24 अगस्त 2023 को तमिलनाडु के दावों का विरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय में अपना जवाब दाखिल किया।
- दोनों राज्यों के मध्य यह विवाद कावेरी नदी के जल के आवंटन पर केंद्रित है, जो दोनों राज्यों से होकर बहती है और लंबे समय से विवाद का मुद्दा रही है।
- तमिलनाडु ने कर्नाटक को खड़ी फसलों के लिए रोजाना 24,000 क्यूसेक कावेरी जल छोड़ने का निर्देश देने की याचिका के साथ उच्चतम न्यायालय में पहुँच गया।
- 24 अगस्त 2023 को कर्नाटक सरकार ने कहा कि तमिलनाडु का तर्क इस धारणा पर आधारित है कि इस वर्ष बारिश में 25 फीसदी की कमी दर्ज होने के बावजूद पानी की स्थिति सामान्य है। कर्नाटक सरकार ने कहा कि तमिलनाडु द्वारा खड़ी फसलों को बचाने की मांग पूरी तरह से गलत है।
- कर्नाटक ने 28.849 हजार मिलियन क्यूबिक फीट (टीएमसी) पानी की कथित कमी को बताते हुए कहा कि यह गणना भ्रामक है। जल संसाधनों की वास्तविक संकटग्रस्त स्थिति की अनदेखी करते हुए, यह गणना गलत धारणा के साथ की गई थी कि वर्तमान जल वर्ष विशिष्ट है।
क्या है कावेरी जल विवाद?
- कावेरी बेसिन के दो राज्यों कर्नाटक और तमिलनाडु के मध्य जल के वितरण को नियंत्रित करती है।
- इसके तहत कर्नाटक के लिए "सामान्य" जल वर्ष के दौरान जून से मई तक तमिलनाडु को कुल 177.25 हज़ार मिलियन क्यूबिक फीट जल छोड़ना अनिवार्य किया गया है।
- इसमें जून से सितंबर तक मानसून महीनों में आवंटित 123.14 हज़ार मिलियन क्यूबिक फीट जल शामिल है।
कावेरी नदी विवाद:
- इस विवाद में मुख्यतः तीन राज्य (केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु) और एक केंद्रशासित प्रदेश (पुद्दुचेरी) शामिल हैं।
- क्योंकि कर्नाटक से निकलने वाली कावेरी नदी में केरल से आने वाली प्रमुख सहायक नदियों के साथ तमिलनाडु से होकर प्रवाहित होती है तथा पुद्दुचेरी के माध्यम से बंगाल की खाड़ी में अंत होती है।
- कावेरी नदी विवाद वर्ष 1892 और 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी तथा मैसूर के मध्य मध्यस्थता से संबंधित है।
- यह विवाद मुख्यतः कर्नाटक और तमिलनाडु के मध्य 1974 में आरंभ हुआ जब कर्नाटक ने तमिलनाडु को विश्वास में लिए ही जल की धारा मोड़ना आरंभ कर दिया।
- दोनों राज्यों के मध्य विवाद बढ़ने पर वर्ष 1990 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (सीडब्लूडीटी) की स्थापना की गई।
- वर्ष 2007 में सीडब्लूडीटी ने अंततः एक निर्णय दिया जिसमें कावेरी जल को चार तटवर्ती राज्यों के बीच विभाजित करने के बारे में बताया गया।
- इसमें निर्णय लिया गया कि संकट के वर्षों में जल का बँटवारा आनुपातिक आधार पर किया जाएगा।
- सीडब्लूडीटी ने फरवरी 2007 में अपना अंतिम निर्णय जारी किया, जिसमें सामान्य वर्ष में 740 टीएमसी की कुल उपलब्धता पर विचार करते हुए कावेरी बेसिन में चार राज्यों के मध्य जल आवंटन करना तय किया गया।
- इन चार राज्यों के मध्य जल का आवंटन इस प्रकार है:-
- तमिलनाडु - 404.25 टीएमसी,
- कर्नाटक- 284.75 टीएमसी,
- केरल- 30 टीएमसी, और
- पुडुचेरी- 7 टीएमसी।
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया, साथ ही बड़े पैमाने पर सीडब्लूडीटी द्वारा निर्धारित जल-बँटवारे की व्यवस्था पर भी अपनी सहमति दी।
- शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को कावेरी प्रबंधन योजना को अधिसूचित करने का भी निर्देश दिया था। जिसे केंद्र ने जून 2018 में 'कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण' और 'कावेरी जल विनियमन समिति' का गठन करते हुए 'कावेरी जल प्रबंधन योजना' को अधिसूचित कर बखूबी पूर्ण किया।
कावेरी नदी:
- उदगम स्थल: पश्चिमी घाट की ब्रह्मगिरि पहाड़ी (दक्षिण-पश्चिमी कर्नाटक)
- कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्यों से होकर दक्षिण-पूर्व की ओर बहते हुए बड़े झरनों के रूप में पूर्वी घाट से उतरकर पुद्दुचेरी के माध्यम से बंगाल की खाड़ी में अंत होती है।
- इसके बाएँ किनारे की सहायक नदियों में प्रमुख: हेमावती, अर्कावती, शिमसा और हरंगी।
- दाहिने किनारे की सहायक नदियाँ हैं: सुवर्णवती, नोयिल, भवानी, लक्ष्मणतीर्थ, काबिनी और अमरावती।