उत्तर भारत का पहला मानव डीएनए बैंक बना रहा है बीएचयू
Utkarsh ClassesLast Updated
31-01-2024
Health and Disease
8 min read
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में उत्तर भारत का पहला मानव डीएनए बैंक बनाया जा रहा है। बीएचयू के जंतु विज्ञान विभाग के ज्ञानेश्वर लैब में 30 जनवरी 2024 को ऑटोमेटेड डीएनए एक्सट्रैक्टर मशीन लगाई गई है।
ऑटोमेटेड डीएनए एक्सट्रैक्टर मशीन के बारे में:
ये मशीन मेक इन इंडिया के तहत पूर्ण रूप से स्वदेशी हैं। इसको इस तरह से बनाया गया है कि इसमें कम से कम प्लास्टिक का उपयोग हो, ताकि वातावरण को कोई नुकसान न हो।
ये मशीन किसी भी जैविक सामग्री यथा खून, लार, बाल या फिर टिशू से डीएनए निकाला जा सकता है।
इसकी सहायता से एक बार में करीब 32 नमूनों से 30 मिनट में डीएनए अलग कर सकती है।
मार्च 2023 में बीएचयू के जंतु विज्ञान विभाग और एडनेट सोसाइटी, हैदराबाद ने पर्सनलाइज्ड मेडिसिन पर तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस आयोजित किया गया था।
इस कॉन्फ्रेंस में 15 देशों से 21 प्रसिद्ध विज्ञानी पहुँचे थे। इसी कॉन्फ्रेंस के एक सुझाव पर बीएचयू में मानव डीएनए बैंक स्थापित किया गया है।
इसी कॉन्फ्रेंस में यह निर्णय लिया गया गया कि बीएचयू एस्टोनिया देश की तरह जीनोम बैंक बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
एक ही क्लिक पर पूरी मेडिकल हिस्ट्री होगी सामने:
इसके द्वारा हर व्यक्ति की मेडिकल हिस्ट्री का ब्योरा एक ही क्लिक पर डॉक्टरों के सामने होगा। विवाह के दौरान ही आने वाली पीढि़यों में होने वाले रोगों के बारे में आगाह किया जा सकेगा। बैंक तैयार करने में लंबा वक्त लगेगा।
एस्टोनिया मॉडल में 20 प्रतिशत लोगों का है डाटा:
यूरोपीय देश एस्टोनिया में वर्ष 2000 के दौरान जीनोम बैंक खुला था। इसमें 20 फीसदी जनता का सैंपल और डाटा उपलब्ध है।
अगर कोई मरीज डॉक्टर के पास जाता है तो उसकी 20 वर्ष की मेडिकल हिस्ट्री सामने आ जाती है।
पता चल जाता है कि उसे कौन-कौन सी बीमारी हुई और कौन सी दवा दी गई। इसका ब्योरा जीनोम बैंक में उपलब्ध है।
एक दवा जब एस्टोनिया में काम नहीं करती है तो फिर भारत जैसे देश में यह कैसे काम करेगी। इसलिए भारत में जीनोम बैंक होना बेहद जरूरी है। इससे स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ा बदलाव आएगा।
एस्टोनिया से बड़ा जीनोम बैंक अमेरिका में भी नहीं है।
जीवन की कुंजी है जीन:
जीनोम बैंक के द्वारा किसी प्राणी के संपूर्ण जीनोम सीक्वेंस का पता लगाया जा सकता है। जीन हमारे जीवन की कुंजी है। हम वैसे ही दिखते या करते हैं, जो काफी अंश तक हमारे शरीर में छिपे सूक्ष्म जीन तय करते हैं।
यही नहीं, जीन मानव इतिहास और भविष्य की ओर भी संकेत करते हैं। जीन वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि एक बार मानव जाति के समस्त जीनों की संरचना का पता लग जाए, तो मनुष्य की जीन-कुंडली के आधार पर, उसके जीवन की समस्त जैविक घटनाओं और दैहिक लक्षणों की भविष्यवाणी करना संभव हो जाएगा।
मानव डीएनए बैंक स्थापना का उद्देश्य:
मानव डीएनए बैंक के स्थापना का मुख्य उद्देश्य इसके मदद से विभिन्न जातियों-जनजातियों के करीब 50 हजार नमूने एकत्र करना है। इसमें कम से कम पाँच वर्ष का समय लगेगा। इसके अगले चरण में इन सैंपल का डीएनए डाटा भी उपलब्ध कराया जा सकेगा।
इससे क्या लाभ होगा?
इसके माध्यम से भविष्य की किसी भी महामारी का लोगों पर प्रभाव समझने में आसानी होगी।
इससे भारत में प्रचलित इंडोगेमी व्यवस्था (स्वजातीय विवाह) के कारण उत्पन्न होने वाले माता-पिता से मिलाने वाली बिमारियों के जिन आधारित अध्ययन के लिए डीएनए की उपलब्धता हो सकेगी।
यह डीएनए बैंक भविष्य में पर्सनल मेडिसिन की दिशा में भी कारगर आधार बनेगा।
इससे तमाम बीमारियों को देखते हुए अनुवांशिक अध्यनन भी हो सकेगा।
मानव जीनोम परियोजना से प्राप्त डाटा बेस के आधार पर विशिष्ट मामलों में व्यक्ति की पहचान आसान हो जाएगी। संदिग्ध अपराधी को उसके डीएनए के आधार पर पकड़ा जा सकता है। जीनोम बैंक का सबसे अधिक लाभ चिकित्सा क्षेत्र में होगा।
पहले किसी रोग से जुड़े एक जीन की खोज करने में कई वर्ष लग जाते थे। अगर बैंक खुला तो जीनोम सीक्वेंसिंग से ऐसे जीन का पता जल्द ही लगाया जा सकेगा।
जीनोम सीक्वेंस के द्वारा अब तक तीस रोगों के जीन का पता लग चुका है। इसमें टार-साक्स सिंड्रोम, सिस्टिक्स फाइब्रॉरिस, हैरिंगटन रोग आदि प्रमुख हैं। अनुवांशिक रोगों का पूर्व आकलन, रोगों की जांच, जीन चिकित्सा पद्धति एवं औषध नियंत्रण के तरीके भी मिल सकेंगे।
वन्यजीवों के लिए पहले डीएनए बैंक का निर्माण:
उत्तरी भारत में वन्यजीवों के लिए पहले डीएनए बैंक का निर्माण कार्य पूरा होने को है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) बरेली के वैज्ञानिकों द्वारा एक ऐसे बैंक का निर्माण किया जा रहा है जिसमें सभी जंगली जीवों के डीएनए के नमूनों को एकत्रित किया जाएगा।
इस बैंक से यह अपेक्षा की जा रही है कि यह वैज्ञानिकों को उनके शोध कार्यों में सहायता प्रदान करने के साथ-साथ जंगली जीवों के शिकार में भी कमी लाएगा।
वर्तमान में देश में हैदराबाद स्थित लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण हेतु लाकोनेस प्रयोगशाला ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहाँ इस प्रकार की सुविधा उपलब्ध है।
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