विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 जून 2024 को नई दिल्ली में 'एक पेड़ माँ के नाम' अभियान का शुभारंभ किया। विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को दुनिया भर में मनाया जाता है। भारत में धरती को माँ माना जाता है। एक पेड़ माँ के नाम अभियान भूमि क्षरण, मिट्टी के कटाव और गिरते जल स्तर को रोकने के लिए वनीकरण द्वारा पृथ्वी के पर्यावरण की सुरक्षा का प्रतीक है।
प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व पर्यावरण दिवस पर नई दिल्ली के बुद्ध जयंती पार्क में पीपल का पेड़ लगाया। प्रधानमंत्री ने देशवासियों से पृथ्वी को बेहतर बनाने और सतत विकास को बढ़ावादेने के लिए वन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए आह्वान किया।
सतत विकास से तात्पर्य संसाधनों का इस तरह से उपयोग करना है जिससे न केवल वर्तमान पीढ़ी की जरूरतें पूरी हों, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन बचे रहें।
पीपल के पेड़ का पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और चिकित्सीय महत्व है। यह एक सदाबहार पेड़ है जिसकी जड़ प्रणाली गहरी होती है और छतरी चौड़ी जो पक्षियों और अन्य जानवरों के लिए एक उत्कृष्ट आवास प्रदान करती है।
ऑक्सीजन पैदा करने वाला पेड़
नीम और तुलसी के साथ, पीपल दुनिया में सबसे अधिक ऑक्सीजन पैदा करने वाले पेड़ों में से एक है। पीपल के पेड़ प्रदूषक तत्वों को अवशोषित करके वायु प्रदूषण को कम करने में भी मदद करते हैं। गहरी जड़ प्रणाली वाले पीपल के पेड़ मिट्टी के संरक्षण और मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करते हैं। पीपल का पेड़ हमारी दुनिया में स्थिरता का प्रतीक है जो भूमि क्षरण, मिट्टी के कटाव और गिरते जल स्तर से जूझ रही है।
सांस्कृतिक महत्व
पीपल का पेड़ हिंदू और बौद्ध धर्म में भी विशेष स्थान रखता है। यह वृक्ष, जो जीवन, धन और उर्वरता का प्रतिनिधित्व करता है, विष्णु का निवास स्थान माना जाता है। राजकुमार सिद्धार्थ को बिहार के बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ और वे भगवान बुद्ध बन गये। इसलिए, पीपल के पेड़ों को बोधि वृक्ष भी कहा जाता है।
पीपल के पेड़ में एनाल्जेसिक, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-माइक्रोबियल गुण भी होते हैं। इसकी पत्तियों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में विभिन्न बीमारियों, जैसे अस्थमा, मधुमेह और त्वचा रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1972 में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस घोषित करने का प्रस्ताव पारित किया था।
दुनिया भर में पहला विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1973 को मनाया गया था।
यह दिन हमारे पर्यावरण के सामने आने वाली समस्याओं, जैसे वायु प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण, अवैध वन्यजीव व्यापार, टिकाऊ खपत, समुद्र स्तर में वृद्धि और खाद्य सुरक्षा पर हितधारकों के बीच वैश्विक जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया में सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए मानव उपभोग पैटर्न को बदलने पर भी केंद्रित है।
हर साल, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) वर्तमान पर्यावरणीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक विषय का चयन करता है।
इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस का विषय है : 'भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने की क्षमता।
इस साल का विषय मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यूएनसीसीडी) की 30वीं वर्षगांठ मनाती है।
मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यूएनसीसीडी) की स्थापना 1994 में 3-14 जून 1992 को ब्राजील के रियो डी जनेरियो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र 'पृथ्वी शिखर सम्मेलन' में की गई थी।
यूएनसीसीडी दिसंबर 1996 में लागू हुआ। विश्व में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण की समस्या के समाधान के लिए यूएनसीसीडी पर हस्ताक्षर किए गए थे।
रियाद, सऊदी अरब, 2 से 13 दिसंबर 2024 तक मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यूएनसीसीडी) के लिए पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी 16) के सोलहवें सत्र की मेजबानी करेगा।