प्रधानमंत्री 23 जनवरी को दिल्ली के लाल किले में नौ दिवसीय पराक्रम दिवस कार्यक्रम का उद्घाटन करेंगे। पराक्रम दिवस 2021 से नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सम्मानित करने के लिए एक वार्षिक उत्सव है।
पराक्रम दिवस 2024 कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएं
यह कार्यक्रम 23 से 31 जनवरी तक आयोजित किया जाएगा और इसमें 26 मंत्रालय और विभाग शामिल होंगे।
- आगामी कार्यक्रम के दौरान पृष्ठभूमि में एक प्रोजेक्शन मैपिंग शो के माध्यम से शानदार लाल किले को एक कैनवास में बदल दिया जाएगा।
- राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के कलाकार मंच पर प्रदर्शन करेंगे और इतिहास और कला के आश्चर्यजनक मिश्रण में बहादुरी और बलिदान की कहानियों से दीवारों को रोशन करेंगे।
- आजाद हिंद फौज के दिग्गजों को मिलेगी विशेष पहचान। आगंतुक पुरालेख प्रदर्शनियों के माध्यम से एक गहन अनुभव में संलग्न होंगे, जिसमे दुर्लभ तस्वीरे और दस्तावेज प्रदर्शित होंगे जो लाल किले में नेताजी और आज़ाद हिंद फौज की उल्लेखनीय यात्रा का वर्णन करते हैं ।
- इस आयोजन में चित्रकारी और मूर्तिकला कार्यशालाए शामिल होगी जो एक व्यावहारिक अनुभव प्रदान करेगी |
पराक्रम दिवस 2024 कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री डिजिटली 'भारत पर्व' का शुभारंभ करेंगे।
- पर्यटन मंत्रालय गणतंत्र दिवस की झांकियों और सांस्कृतिक प्रदर्शनों के माध्यम से देश की विविधता को प्रदर्शित करने के लिए कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है।
- वे वोकल फॉर लोकल और विविध पर्यटक आकर्षण जैसी नागरिक-केंद्रित पहलों पर प्रकाश डालेंगे। यह कार्यक्रम लाल किले के सामने राम लीला मैदान और माधव दास पार्क में आयोजित किया जाएगा।
- यह कार्यक्रम दुनिया भर के लोगों को राष्ट्र की पुनरुत्थानवादी भावना से जुड़ने, प्रतिबिंबित करने और जश्न मनाने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
पराक्रम दिवस का इतिहास
- उद्घाटन कार्यक्रम 2021 में कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में हुआ।
- 2022 में, इंडिया गेट पर नेताजी की एक होलोग्राफिक प्रतिमा का अनावरण किया गया।
- 2023 में, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के 21 सबसे बड़े अनाम द्वीपों का नाम आधिकारिक तौर पर परमवीर चक्र पुरस्कार प्राप्त 21 विजेताओं के नाम पर रखा गया था।
- इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय स्मारक के एक मॉडल का अनावरण किया गया, जिसे नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप पर बनाने की योजना थी।
आज़ाद हिन्द फ़ौज के बारे में
- आज़ाद हिंद फ़ौज, या इंडिया नेशनल आर्मी (INA), की स्थापना पहली बार 1942 में ब्रिटिश राज से भारत की पूर्ण स्वतंत्रता सुरक्षित करने के लिए मोहन सिंह द्वारा की गई थी।
- हालाँकि, रासबिहारी बोस और मोहन सिंह को सौंपी गई पहली INA, एशिया में जापान के युद्ध में अपनी भूमिका को लेकर इसके नेतृत्व और जापानी सेना के बीच मतभेदों के कारण उसी वर्ष दिसंबर में भंग कर दी गई थी।
- आईएनए को सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया गया, जिन्होंने 1943 में दक्षिण पूर्व एशिया में पहुंचने के बाद अपने नेतृत्व में इसे पुनर्जीवित किया।
- सेना बोस की सरकार अर्ज़ी हुकुमत-ए-आजाद हिंद (स्वतंत्र भारत की अनंतिम सरकार) का हिस्सा बन गई।
- हालाँकि, INA को जापानी साम्राज्य की कठपुतली सेना के रूप में जाना जाने लगा।
- आईएनए में मुख्य रूप से पूर्व कैदी और मलाया तथा बर्मा नागरिक आबादी शामिल थी।
- झाँसी की रानी रेजिमेंट भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA)की इकाईयों में से एक थी। INA की इस महिला रेजिमेंट का नाम झाँसी की योद्धा रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर रखा गया था ,जिन्होंने 1857 में भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी ।