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भारत में 4000 से अधिक गंगा डॉल्फ़िन: भारतीय वन्यजीव संस्थान

Utkarsh Classes Last Updated 23-05-2024
Over 4000 Gangetic Dolphins in India :Indian Wildlife Institute Environment 6 min read

भारतीय वन्यजीव संस्थान की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, गंगा नदी बेसिन में 4000 से अधिक डॉल्फ़िन पायी गई हैं। गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों में पाई जाने वाली नदी डॉल्फ़िन में से 2000 से अधिक अकेले उत्तर प्रदेश में पाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में डॉल्फ़िन मुख्यतः चम्बल नदी में पाई जाती हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, गंगा नदी घाटियों में डॉल्फ़िन की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि से संकेत मिलता है कि नदी के प्रदूषण स्तर में गिरावट आ रही है और सरकार के संरक्षण प्रयास रंग ला रहे हैं।

गंगा नदी डॉल्फिन

गंगा नदी डॉल्फिन को ब्लाइंड डॉल्फिन, गंगा सुसु या हिहु के नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम प्लैटनिस्टा गैंगेटिका है।

ऐतिहासिक रूप से, गंगा डॉल्फिन गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगु नदी प्रणालियों में पाई जाती थी।

वर्तमान में, गंगा डॉल्फिन भारत की गंगा-ब्रह्मपुत्र-बराक नदी प्रणाली, नेपाल की करनाली, सप्त कोशी और नारायणी नदी प्रणाली और बांग्लादेश की मेघना, कर्णफुली और सांगु नदी प्रणाली के कुछ हिस्सों में पाई जाती है।

भारत के भीतर, यह मुख्य रूप से गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों, घाघरा, कोसी, गंडक, चंबल, रूपनारायण और यमुना की मुख्यधारा में पाया जाता है।

गंगा डॉल्फिन की विशेषता

गंगा की डॉल्फ़िन अंधी होती हैं और केवल मीठे पानी में ही रह सकती हैं। वे शिकार करने के लिए सोनार की तकनीक का उपयोग करते हैं। वे अल्ट्रासोनिक ध्वनि तरंगें उत्सर्जित करते हैं जो मछली और अन्य शिकार से टकराकर वापस डॉल्फ़िन के पास आती है जिससे डॉल्फ़िन  को उनका स्थान पता चल जाता है और फलवरूप उनका शिकार करना आसान हो जाता है । वे अक्सर अकेले या छोटे समूहों में पाए जाते हैं। डॉल्फ़िन स्तनधारी पशु हैं मछ्ली नहीं ।वे पानी में सांस नहीं ले सकते हैं, इसलिए उन्हें हर 30-120 सेकंड में वापस पानी के सतह पर वापस आना पड़ता है। 

साँस लेते समय निकलने वाली ध्वनि के कारण, जानवर को लोकप्रिय रूप से 'सुसु' कहा जाता है।

 

गंगा डॉल्फ़िन को ख़तरा

विभिन्न कारकों के कारण गंगा डॉल्फ़िन की आबादी में बड़ी गिरावट आई है । कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं:

  • मछली पकड़ने के गियर में उलझने से अनजाने में हुई में उनकी मौत ।
  • औषधीय प्रयोजनों के लिए इसके तेल के उपयोग के लिए डॉल्फ़िन का अवैध शिकार।
  • बैराज, ऊंचे बांधों और तटबंधों के निर्माण, प्रदूषण (औद्योगिक अपशिष्ट और कीटनाशक, नगरपालिका सीवेज निर्वहन और जहाज यातायात से शोर) जैसी विकास परियोजनाओं के कारण इसके आवास का विनाश।

गंगा डॉल्फिन को बचाने के लिए सरकार ने उठाए कदम

नदी डॉल्फ़िन को संरक्षित करने के लिए, भारत सरकार और राज्य सरकारों ने कई कदम उठाए हैं। उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदम इस प्रकार हैं:

  • गंगा नदी डॉल्फिन को वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध किया गया है जो उच्चतम स्तर की कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
  • केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा 18 मई 2010 को गंगा नदी डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय पशु घोषित किया गया था।
  • केंद्र प्रायोजित योजना 'वन्यजीव आवासों का विकास' के तहत राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए गंगा नदी डॉल्फ़िन को 22 गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों में से एक के रूप में शामिल किया गया है।
  • बिहार के भागलपुर में विक्रमशिला डॉल्फिन अभयारण्य इस प्रजाति की रक्षा के लिए स्थापित किया गया है।
  • नदी डॉल्फ़िन और जलीय आवासों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक कार्य योजना (2022-2047) विकसित की गई है। 
  • उत्तर प्रदेश सरकार ने चंबल अभयारण्य में डॉल्फिन अभयारण्य क्षेत्र घोषित किया है।
  • प्रधान मंत्री ने 2019 में नमामि गंगा परियोजना के अर्थ गंगा भाग के तहत प्रोजेक्ट डॉल्फिन की घोषणा की है।
  • इसका उद्देश्य 2030  तक डॉल्फ़िन की आबादी को दोगुना करना है।

भारतीय वन्यजीव संस्थान 

भारतीय वन्यजीव संस्थान की स्थापना 1982 में केंद्रीय वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान के रूप में की गई थी।

संस्थान की स्थापना सरकारी और गैर-सरकारी कर्मियों को प्रशिक्षित करने, अनुसंधान करने और वन्यजीव संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन के मामलों पर सलाह देने के लिए की गई थी। यह मुख्य रूप से देश भर में वन्य जीवन और इसके प्रबंधन पर अनुसंधान करता है।

मुख्यालय: देहरादून, उत्तराखंड

FAQ

उत्तर: उत्तर प्रदेश में 2000 से अधिक नदी डॉल्फ़िन पाये जाते हैं।

उत्तर: 18 मई 2010

उत्तर: गंगा नदी और उसकी सहायक नदियाँ, घाघरा, कोसी, गंडक, चंबल, रूपनारायण और यमुना।

उत्तर: गंगा नदी में पायी जाने वाली डॉल्फ़िन को । यह स्तनपायी है और सांस लेने के लिए इसे नियमित रूप से हर 30-120 सेकंड में सतह पर आना पड़ता है। सांस लेते समय इनसे निकलने वाली ध्वनि के कारण इन्हें सुसु भी कहा जाता है।

उत्तर : बिहार के भागलपुर ज़िले में ।

उत्तर: देहरादून, उत्तराखंड

उत्तर : केंद्रीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय।

उत्तर: 1982.
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