भारतीय वन्यजीव संस्थान की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, गंगा नदी बेसिन में 4000 से अधिक डॉल्फ़िन पायी गई हैं। गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों में पाई जाने वाली नदी डॉल्फ़िन में से 2000 से अधिक अकेले उत्तर प्रदेश में पाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में डॉल्फ़िन मुख्यतः चम्बल नदी में पाई जाती हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, गंगा नदी घाटियों में डॉल्फ़िन की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि से संकेत मिलता है कि नदी के प्रदूषण स्तर में गिरावट आ रही है और सरकार के संरक्षण प्रयास रंग ला रहे हैं।
गंगा नदी डॉल्फिन को ब्लाइंड डॉल्फिन, गंगा सुसु या हिहु के नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम प्लैटनिस्टा गैंगेटिका है।
ऐतिहासिक रूप से, गंगा डॉल्फिन गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगु नदी प्रणालियों में पाई जाती थी।
वर्तमान में, गंगा डॉल्फिन भारत की गंगा-ब्रह्मपुत्र-बराक नदी प्रणाली, नेपाल की करनाली, सप्त कोशी और नारायणी नदी प्रणाली और बांग्लादेश की मेघना, कर्णफुली और सांगु नदी प्रणाली के कुछ हिस्सों में पाई जाती है।
भारत के भीतर, यह मुख्य रूप से गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों, घाघरा, कोसी, गंडक, चंबल, रूपनारायण और यमुना की मुख्यधारा में पाया जाता है।
गंगा की डॉल्फ़िन अंधी होती हैं और केवल मीठे पानी में ही रह सकती हैं। वे शिकार करने के लिए सोनार की तकनीक का उपयोग करते हैं। वे अल्ट्रासोनिक ध्वनि तरंगें उत्सर्जित करते हैं जो मछली और अन्य शिकार से टकराकर वापस डॉल्फ़िन के पास आती है जिससे डॉल्फ़िन को उनका स्थान पता चल जाता है और फलवरूप उनका शिकार करना आसान हो जाता है । वे अक्सर अकेले या छोटे समूहों में पाए जाते हैं। डॉल्फ़िन स्तनधारी पशु हैं मछ्ली नहीं ।वे पानी में सांस नहीं ले सकते हैं, इसलिए उन्हें हर 30-120 सेकंड में वापस पानी के सतह पर वापस आना पड़ता है।
साँस लेते समय निकलने वाली ध्वनि के कारण, जानवर को लोकप्रिय रूप से 'सुसु' कहा जाता है।
विभिन्न कारकों के कारण गंगा डॉल्फ़िन की आबादी में बड़ी गिरावट आई है । कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं:
नदी डॉल्फ़िन को संरक्षित करने के लिए, भारत सरकार और राज्य सरकारों ने कई कदम उठाए हैं। उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदम इस प्रकार हैं:
भारतीय वन्यजीव संस्थान की स्थापना 1982 में केंद्रीय वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान के रूप में की गई थी।
संस्थान की स्थापना सरकारी और गैर-सरकारी कर्मियों को प्रशिक्षित करने, अनुसंधान करने और वन्यजीव संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन के मामलों पर सलाह देने के लिए की गई थी। यह मुख्य रूप से देश भर में वन्य जीवन और इसके प्रबंधन पर अनुसंधान करता है।
मुख्यालय: देहरादून, उत्तराखंड