नॉर्वे, स्पेन और आयरलैंड की सरकारों ने 22 मई 2024 को घोषणा की है कि वे फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता देंगे। त्वरित प्रतिक्रिया में, इजरायली सरकार ने इस कदम की निंदा की, जबकि फिलिस्तीनियों ने इसका स्वागत किया। एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की तीन देशों द्वारा आधिकारिक मान्यता 28 मई 2024 को प्रभावी होगी।
तीन यूरोपीय देशों में नॉर्वे फ़िलिस्तीनी राज्य की मान्यता की घोषणा करने वाला पहला देश था। नॉर्वे के प्रधान मंत्री, जोनास गहर स्टोरे ने कहा कि फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दिए बिना क्षेत्र में कोई शांति नहीं हो सकती है। नॉर्वे दो-राज्य समाधान का समर्थन करता है, जो इज़राइल राज्य के साथ फिलिस्तीन के एक स्वतंत्र देश अस्तित्व को स्वीकार करता है। इज़राइल और फिलिस्तीनी नेतृत्व के बीच 1993 का ऐतिहासिक ओस्लो शांति समझौता दो-राज्य समाधान की आवश्यकता को स्वीकार करता है।
इसी दिन आयरलैंड के प्रधानमंत्री साइमन हैरिस ने भी यह घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह स्पेन और नॉर्वे के यह एक साथ समन्वित कदम था और इसका उद्देश्य दो-राज्य समाधान के माध्यम से इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को हल करने में मदद करना था।
स्पेन के प्रधान मंत्री पेड्रो सांचेज़ ने भी 21 मई 2024 को अपने देश की संसद में अपेक्षित घोषणा की।
सान्चेज़ ने कहा कि दो-राज्य समाधान की व्यवहार्यता का समर्थन करने के लिए फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने का उनकी सरकार का निर्णय गाजा में युद्ध के साथ "गंभीर खतरे में है"।
दो-राज्य समाधान और गाजा में युद्ध के बारे में पढ़ें
बेंजामिन नेतन्याहू की इजरायली सरकार ने स्पेन, आयरलैंड और नॉर्वे के कदम की निंदा की और इन तीन देशों से अपने राजदूतों को वापस बुला लिया। एक भड़काऊ कदम के रूप में, इज़राइल के धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री, इतामार बेन ग्विर ने यरूशलेम के अल अक्सा मस्जिद परिसर का दौरा किया, और घोषणा की कि विवादित पवित्र स्थल "केवल इज़राइल राज्य का है।"
अल अक्सा मस्जिद को मक्का और मदीना के बाद मुसलमानों का तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। पुराने येरूशलम शहर में स्थित अल अक्सा मस्जिद इजराइल के नियंत्रण में है। जिस पहाड़ी की चोटी पर अल अक्सा मस्जिद स्थित है, उसे यहूदी भी पवित्र मानते हैं। दोनों समुदायों को बीच में इस स्थान को लेकर हिंसक संघर्ष भी होती रहती है।
7 अक्टूबर को इजराइल पर हमला करने वाले फिलिस्तीनी उग्रवादी समूह हमास ने इन देशों के इस कदम का स्वागत किया है.
फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 142 देश पहले से ही फ़िलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता देते हैं। इसमें कई पश्चिम एशियाई, अफ्रीकी और एशियाई देश शामिल हैं।
अल्जीरिया दुनिया का पहला देश था जिसने दो-राज्य समाधान, फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता दी थी।
हालाँकि, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, अधिकांश पश्चिमी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया ने फ़िलिस्तीन को मान्यता नहीं दी है।
अप्रैल 2024 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में फिलिस्तीनी के पूर्ण संयुक्त राष्ट्र सदस्य राज्य बनने के प्रयास को रोकने के लिए अपने वीटो का भी इस्तेमाल किया था ।
फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात ने 15 नवंबर 1998 को पहले फिलिस्तीनी इंतिफादा के दौरान स्वतंत्र देश फिलिस्तीन की स्थापना की घोषणा की थी । इंतिफादा का तात्पर्य पश्चिमी तट और गाजा पट्टी में रहने वाले फिलिस्तीनियों द्वारा इजरायली कब्जे के खिलाफ लोकप्रिय विद्रोह से है।
भारत फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले दुनिया के पहले देशों में से एक था।
भारत ने 1988 में फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देने वाले दुनिया के पहले कुछ देशों में से एक था।
भारत ने 1996 में गाजा शहर में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला जिसे बाद में 2003 में पश्चिमी तट के रामल्लाह में स्थानांतरित कर दिया गया।
2011 में, भारत ने फ़िलिस्तीन को यूनेस्को के पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल करने के पक्ष में मतदान किया और 2011 में फ़िलिस्तीन को यूनेस्को के सदस्य के रूप में शामिल किया गया था ।
भारत, 29 नवंबर, 2012 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में पेश किए गए प्रस्ताव का सह-प्रायोजक था, जिसने फिलिस्तीन को मतदान के अधिकार के बिना संयुक्त राष्ट्र में 'गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य' के रूप में स्वीकार करने का प्रस्ताव किया गया था। इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद फिलिस्तीन को मतदान के अधिकार के बिना संयुक्त राष्ट्र में 'गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य का दर्जा मिला हुआ है।
तीन साल बाद सितंबर 2015 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में पहली बार फिलिस्तीनी झंडा आधिकारिक तौर पर फहराया गया।