रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने पीएसएलवी सी-58 रॉकेट से लॉन्च किए गए पेलोड पर ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम को कक्षा में सफलतापूर्वक पहुँचाया।
- रक्षा मंत्रालय द्वारा 1 फरवरी 2024 को दी गई जानकारी के अनुसार डीआरडीओ की प्रौद्योगिकी विकास निधि (टीडीएफ) योजना के तहत ‘ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम’ को विकसित किया गया है। ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम को बेंगलूरू स्थित स्टार्ट-अप ‘बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड’ ने विकसित किया है।
पर्यावरण के अनुकूल है ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम:
- ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम जैसे नवोन्मेषी तकनीक के तहत कक्षा के लिए पर्यावरण - अनुकूल प्रोपल्शन सिस्टम तैयार किया गया है।
- जबकि पारंपरिक रॉकेट ईंधन (प्रोपल्शन सिस्टम) अत्यधिक जहरीला और कैंसरजन्य रसायन होता है।
- रक्षा मंत्रालय के अनुसार, ऊंचाई नियंत्रण और सूक्ष्म उपग्रहों को कक्षा में बनाए रखने के लिए 1एन क्लास ग्रीन मोनोप्रोपेलेंट थ्रस्टर की इस परियोजना को मंजूरी दी गई है।
- इसे बेंगलुरु स्थित स्टार्टअप बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (विकास एजेंसी) ने विकसित किया है।
- इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क, बेंगलुरु में पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल (पीओईएम) से टेलीमेट्री डेटा को जमीनी स्तर के समाधान के साथ मान्य किया गया है। यह सभी प्रदर्शन मापदंडों से अधिक पाया गया है।
स्वदेशी तकनीक से विकसित किया है ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम:
- स्वदेशी रूप से विकसित ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम कक्षा (ऑर्बिट) ने अपनी कार्यक्षमता का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है। रक्षा मंत्रालय ने इसे अंतरिक्ष रक्षा तकनीक के क्षेत्र में बड़ी छलांग बताया है।
क्या होगा लाभ:
- रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इस नवोन्मेषी तकनीक के परिणामस्वरूप कम कक्षा वाले स्थान के लिए एक नॉन-टॉक्सिक और पर्यावरण-अनुकूल प्रणोदन प्रणाली तैयार हुई है।
- रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इस प्रणाली में स्वदेशी रूप से विकसित प्रोपेलेंट, फिल एंड ड्रेन वाल्व, लैच वाल्व, सोलेनॉइड वाल्व, कैटलिस्ट बेड, ड्राइव इलेक्ट्रॉनिक्स आदि शामिल हैं। यह उच्च थ्रस्ट आवश्यकताओं वाले अंतरिक्ष मिशनों के लिए आदर्श है।
- इसमें कहा गया है कि पूरा प्रोजेक्ट डीआरडीओ के प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग एंड मेंटरिंग ग्रुप के मार्गदर्शन में विकास एजेंसी द्वारा विकसित किया गया है।
प्रौद्योगिकी विकास निधि (टीडीएफ) योजना के बारे में:
- टीडीएफ योजना रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला एक प्रमुख कार्यक्रम है। इसे डीआरडीओ द्वारा 'मेक इन इंडिया' पहल के अंतर्गत क्रियान्वित किया गया है।
टीडीएफ योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- निजी उद्योगों, विशेष रूप से एमएसएमई और स्टार्टअप के साथ जुड़ना, जिससे सैन्य प्रौद्योगिकी में डिजाइन एवं विकास की संस्कृति को बढ़ावा मिल सके। उन्हें सहायता अनुदान के साथ-साथ समर्थन प्रदान किया जा सके।
- देश में पहली बार विकसित की जा रही विशिष्ट प्रौद्योगिकियों के लिए अनुसंधान, डिजाइन और विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
- निजी संस्थाओं के साथ सशस्त्र बलों, अनुसंधान संगठनों, शिक्षाविदों के बीच एक पुल का निर्माण करना।
- अवधारणा का प्रमाण रखने वाली भविष्य की प्रौद्योगिकियों का समर्थन करना और उन्हें प्रोटोटाइप में परिवर्तित करना।
टीडीएफ योजना से प्राप्त होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं:
- देश की रक्षा प्रौद्योगिकियों का डिजाइन एवं विकास करने के लिए भारतीय उद्योगों में क्षमता और दक्षता निर्माण।
- अनुसंधान एवं विकास के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना।
- देश में रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण।
- रक्षा प्रौद्योगिकी में 'आत्मनिर्भरता' प्राप्त करना।
वर्तमान समय में विभिन्न उद्योगों के लिए 70 परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान की गई है,जिसकी कुल लागत 291.25 करोड़ रुपये है। इस योजना के अंतर्गत 16 रक्षा प्रौद्योगिकियों को सफलतापूर्वक विकसित/साकार किया गया है।
टीडीएफ योजना के लिए अंतरिम बजट 2024-25 में आवंटन:
- टीडीएफ योजना के लिए अंतरिम बजट 2024-25 में आवंटन 60 करोड़ रुपये है, जो विशेष रूप से नए स्टार्ट-अप, एमएसएमई और शिक्षाविदों के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- यह नवाचार में रुचि रखने वाले युवा प्रतिभाशाली दिमागों को आकर्षित करते हैं और डीआरडीओ के सहयोग से रक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट प्रौद्योगिकी विकसित करते हैं।