फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन कंपनी ने घोषणा की है कि वह फाल्कन 2000 एलएक्सएस बिजनेस एग्जीक्यूटिव जेट के निर्माण के लिए भारत में एक असेंबली लाइन बनाएगी। इसकी घोषणा, कंपनी द्वारा 2025 पेरिस एयर शो के दौरान की गई।
भारत में निर्मित पहला फाल्कन 2000 एलएक्सएस विमान 2028 में बाज़ार में आने की उम्मीद है।
यह पहली बार होगा कि डसॉल्ट अपने फाल्कन 2000 एलएक्सएस एग्जीक्यूटिव बिजनेस जेट का निर्माण फ्रांस के बाहर करेगा जो भारत और वैश्विक बाजार के माँगो को पूरा करेगा।
डसॉल्ट राफेल लड़ाकू विमानों का भी निर्माता है। जून 2025 में, डसॉल्ट एविएशन ने हैदराबाद में लड़ाकू विमानों के धड़ के निर्माण के लिए टाटा एडवांस्ड सिस्टम लिमिटेड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। हैदराबाद प्लांट में 2028 से उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।
डसॉल्ट एविएशन के इतिहास में यह पहली बार है कि उसके राफेल लड़ाकू विमान का धड़ फ्रांस के बाहर निर्मित किया जाएगा।
फाल्कन 2000 एलएक्सएस बिजनेस एग्जीक्यूटिव जेट का निर्माण महाराष्ट्र के नागपुर के स्थित मिहान विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) में डसॉल्ट रिलायंस एविएशन लिमिटेड में किया जाएगा।
डसॉल्ट रिलायंस एविएशन लिमिटेड, डसॉल्ट एविएशन और रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड का संयुक्त उद्यम है।
रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की सहायक कंपनी है। इसका स्वामित्व अनिल अंबानी के पास है।
डसॉल्ट रिलायंस एविएशन लिमिटेड की स्थापना 2017 में हुई थी।
कंपनी, फाल्कन जेट की नई असेंबली लाइन बनाने के लिए नागपुर संयंत्र में सुविधा का विस्तार करने के लिए निवेश करेगी।
कंपनी अब तक फाल्कन 2000 विमान के लिए 100 से अधिक प्रमुख उपखंडों को असेंबल करती थी।
अब यह पूरा विमान असेंबल करेगी।
भारत दुनिया का पाँचवाँ देश बन जाएगा , जिनके पास कार्यकारी व्यावसायिक जेट बनाने की क्षमता हो जाएगी। वर्तमान में फ्रांस, कनाडा, ब्राजील और संयुक्त राज्य अमेरिका इस प्रकार के विमानों का उत्पादन करते हैं।
विमानों का निर्माण वैश्विक बाजार और भारत के लिए किया जाएगा।
डसॉल्ट रिलायंस एविएशन लिमिटेड को फाल्कन 6X और फाल्कन 8X संस्करण सहित फाल्कन श्रृंखला के लिए उत्कृष्टता केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा।
यह भारत के बाहर कंपनी का पहला ऐसा उत्कृष्टता केंद्र होगा।
यह भारत के उच्च-स्तरीय व्यावसायिक जेट विनिर्माण के लिए एक रणनीतिक केंद्र के रूप में उभरने का संकेत देता है।
यह भारत को एयरोस्पेस क्षेत्र में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का एक अभिन्न अंग बना देगा।
यह भारत सरकार की आत्मनिर्भर पहल को बढ़ावा देगा और भारत को विमानन विनिर्माण के उभरते केंद्र के रूप में स्थापित करेगा।
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