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गुजरात ने समान नागरिक संहिता पर रंजना देसाई समिति की स्थापना की

Utkarsh Classes Last Updated 07-02-2025
Gujarat Set up Ranjana Desai Committee on Uniform Civil Code Committee and Commission 5 min read

गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल ने राज्य में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता का आकलन करने के लिए उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने की घोषणा की है। 

गुजरात ,भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा शासित दूसरी राज्य सरकार है जिसने समान नागरिक संहिता पर यह कदम उठाया है । इससे पहले ,स्वतंत्रता के बाद, भाजपा शासित उत्तराखंड सरकार , 27 जनवरी 2025 को समान नागरिक संहिता लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया था।

समिति की संरचना 

समिति में पांच सदस्य होंगे और  समिति की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश श्रीमती रंजना देसाई करेंगी। 

श्रीमती रंजना देसाई उत्तराखंड के लिए एक आदर्श समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित समिति की भी अध्यक्षा थीं।

समिति के अन्य सदस्य इस प्रकार हैं:

  • वरिष्ठ (सेवानिवृत्त) आईएएस अधिकारी सी.एल. मीना, 
  • अधिवक्ता आर.सी. कोडेकर, 
  • पूर्व कुलपति दक्षेश ठाकर, और
  • सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री गीताबेन श्रॉफ।

समिति का कार्य  

  • समिति गुजरात में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता का आकलन करेगी;
  • राज्य के लिए एक आदर्श कानून का मसौदा तैयार करेगी ;
  • समान नागरिक संहिता राज्य में सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों और विशेषाधिकारों की गारंटी देगी।
  • समिति को 45 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने की उम्मीद है।

समान नागरिक संहिता के बारे में 

समान नागरिक संहिता का प्रावधान भारतीय संविधान के अध्याय IV ,अनुच्छेद 44 में है। अनुच्छेद 44 में प्रावधान है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में भारत के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।

समान नागरिक संहिता पर संसद और राज्य विधानमंडल दोनों कानून बना सकते हैं।

भारत में समान आपराधिक कानून है लेकिन गोवा और उत्तराखंड को छोड़कर अन्य राज्यों में समान नागरिक संहिता नहीं है।

आपराधिक और नागरिक कानून के बीच अंतर

किसी देश की कानूनी प्रणाली की दो शाखाएँ होती हैं- आपराधिक और नागरिक कानून।

दोनों के बीच मुख्य अंतर यह है कि आपराधिक कानून सजा पर केंद्रित है जबकि नागरिक कानून विवाद समाधान पर केंद्रित है।

आपराधिक कानून से तात्पर्य समाज के खिलाफ आगजनी, हत्या, चोरी, सेंधमारी जैसे अपराधों से निपटने के लिए बनाए गए कानून से है। आपराधिक कानून का उल्लंघन करने के आरोपी व्यक्ति को सक्षम विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार अदालत द्वारा दंडित किया जाता है।

कानून धार्मिक या अन्य सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर आरोपियों के बीच कोई भेदभाव नहीं करता है। 

भारत में एक समान आपराधिक कानून है जिसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860 में संहिताबद्ध किया गया है । आईपीसी को भारतीय न्याय संहिता, 2023 द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है।

नागरिक कानून 

नागरिक कानून दो पक्षों - व्यक्ति या संगठन -के बीच विवादों को  निपटता है । नागरिक कानून संपत्ति के उत्तराधिकार, विवाह, तलाक, बच्चे को गोद लेने आदि से संबंधित विवादों से निपटता है।

गोवा और उत्तराखंड को छोड़कर, भारत के अन्य राज्यों में नागरिक विवाद का फैसला अदालतों द्वारा व्यक्ति के धार्मिक और प्रथागत कानून को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।

समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि नागरिक काननों के तहत आना वाले  विवाद का निर्णय राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानून द्वारा किया जाएगा, न कि धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य बना

 

 

FAQ

उत्तर: सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजना देसाई।

उत्तर : भूपेन्द्र पटेल

उत्तर: अनुच्छेद 44
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