पांच बार बांग्लादेश की प्रधान मंत्री रहीं शेख हसीना वाजेद ने एक महीने के व्यापक हिंसक छात्र विरोध के बाद 4 अगस्त 2024 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया और एक सैन्य हेलीकॉप्टर में सवर होकर भारत आ गईं । सरकारी नौकरी में कोटा के खिलाफ छात्रों का विरोध जल्द ही सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया, जिसके कारण देश में 300 से अधिक लोग, मुख्य रूप से नागरिक, मारे गए। उनके इस्तीफे से बांग्लादेश में उनका 15 साल का निर्बाध शासन समाप्त हो गया। वह लगभग 20 वर्षों तक बांग्लादेश की प्रधान मंत्री रही हैं।
बांग्लादेश के सबसे लंबे समय तक सेवारत प्रधान मंत्री शेख हसीना वाजेद का हेलीकॉप्टर उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में भारतीय वायु सेना के हिंडन हवाई अड्डे पर 4 अगस्त 2024 को उतरा। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने उनसे हिंडन हवाई अड्डे पर मुलाकात की।
जून 2024 में बांग्लादेश के उच्च न्यायालय ने एक फैसले में देश के 1971 के मुक्ति आंदोलन में भाग लेने वालों के वंशजों के लिए 30 प्रतिशत सरकारी नौकरियों में आरक्षण को बहाल कर दिया था । इस आदेश के बाद बांग्लादेश में लगभग 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियाँ बांग्लादेश में समाज के विभिन्न वर्गों के लिए आरक्षित हो गई थीं।
उच्च न्यायालय के फैसले के तुरंत बाद बांग्लादेश की राजधानी ढाका में छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन शुरू हो
गया । यह विरोध जल्द ही हसीना सरकार के खिलाफ एक आंदोलन में बदल गया और छात्र आंदोलनकारी सरकार के इस्तीफे की मांग करने लगे।
बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 21 जुलाई को दिए गए फैसले में नौकरी कोटा पर उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिए जाने के बावजूद सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी रहा।
छात्रों को बांग्लादेश के मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी का समर्थन प्राप्त था।
76 साल की शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं। बांग्लादेश के पहले प्रधान मंत्री शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार की 1975 में एक सैन्य तख्तापलट में हत्या कर दी गई थी।
शेख हसीना और उनके जीवित परिवार के अन्य सदस्यों को 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा भारत में राजनीतिक शरण दी गई थी।
1990 में शेख हसीना वापस अपने देश आईं और देश में सैन्य शासक और तत्कालीन राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद इरशाद के खिलाफ लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का नेतृत्व किया,जिसके कारण हुसैन मोहम्मद इरशाद को सत्ता छोड़ना पड़ा।
1996 में हुए संसदीय चुनाव में उनकी पार्टी अवामी लीग के चुनाव जीतने के बाद हसीना पहली बार पांच साल के लिए प्रधान मंत्री बनीं।
2009 में वह दोबारा सत्ता में आईं. और 5 अगस्त 2024 तक सत्ता में रहीं।
2024 में हुए आम चुनाव का बेगम खालिदा जिया के नेतृत्व वाली प्रमुख विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनल पार्टी ने बहिष्कार किया था।
पिछले 15 वर्षों के शेख हसीना के सत्ता के दौरान देश में राजनीतिक असहिष्णुता बहुत बढ़ गई थी जिसमे विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, न्यायेतर हत्याएं, मीडिया पर प्रतिबंध और असहमति का दमन देखा गया ।
कमजोर अर्थव्यवस्था, उच्च मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के साथ-साथ उनकी निरंकुश शासन शैली उनके पतन का कारण बनी और उन्हें देश छोड़ना पड़ा।
शेख हसीना के शासनकाल में भारत बांग्लादेश के रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं। शेख हसीना के नेतृत्व में 1996 में दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक गंगा नदी के बंटवारे पर संधि पर हस्ताक्षर किये गये थे।
उनके कार्यकाल के दौरान विभिन्न रेल सड़क और बंदरगाह कनेक्टिविटी परियोजनाएं शुरू की गईं और रक्षा संबंध मजबूत हुए।
मुख्य विपक्षी दल बेगम खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के साथ भारत के संबंध कभी अच्छे नहीं रहे हैं। इन दोनों पार्टियों ने शेख हसीना सरकार के खिलाफ छात्र आंदोलन का समर्थन किया था।
2018 में भ्रष्टाचार के एक मामले में जेल में बंद बेगम जिया को शेख हसीना के भारत भाग जाने के बाद राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन चुप्पू ने तुरंत जेल से रिहा कर दिया था।
बांग्लादेश से भारत में शरणार्थियों विशेषकर हिंदुओं के आने का भी डर है क्योंकि उनकी खिलाफ देश में इस्लामी कट्टरपंथियों के अत्याचारों का बढ्ने का डर है।
बांग्लादेश के राष्ट्रपति: मोहम्मद शहाबुद्दीन चुप्पू
राजधानी: ढाका
मुद्रा : टका