सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक विवाह को वैध घोषित करने के बाद नेपाल औपचारिक रूप से समलैंगिक विवाह को पंजीकृत करने वाला पहला दक्षिण एशियाई देश बन गया है।
- 35 वर्षीय ट्रांस-महिला माया गुरुंग और 27 वर्षीय समलैंगिक सुरेंद्र पांडे के विवाह को कानूनी रूप से मान्यता दी गयी है। उनकी यह शादी पश्चिमी नेपाल के लामजंग जिले के डोरडी ग्रामीण नगर पालिका में पंजीकृत की गई है I
- 2007 में नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक विवाह की अनुमति दी गई थी।
- इसके संबंध में 2015 में अपनाए गए नेपाल के संविधान में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यौन रुझान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
भारत में समलैंगिक विवाह के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी
- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की याचिकाओं को खारिज करते हुए अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया है और इस मुद्दे की गहन जाँच के लिए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों पर गहराई से विचार करते हुए अपना निर्णय दिया है।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को संवैधानिक वैधता की अनुमति देने के खिलाफ 3:2 से मतदान किया।
- मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि, न्यायालय न तो विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) 1954 को अमान्य करार दे सकता है और न ही समलैंगिक सदस्यों को विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के दायरे में शामिल करने का प्रावधान जोड़ सकता है। इस पर कानून बनाना संसद और राज्य विधानमंडल का दायित्व है।
- संविधान पीठ के न्यायाधीश इस बात पर भी सहमत थे कि संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों में विवाह का अधिकार का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
- साथ ही सर्वोच्च न्यायालय कहा कि वैवाहिक संबंध स्थायी नहीं होते है।
- सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि समलैंगिक व्यक्तियों को "संघ" में प्रवेश करने का समान अधिकार और स्वतंत्रता है।
भारत में समलैंगिक विवाह की वैधता:
- भारतीय संविधान के तहत विवाह के अधिकार को स्पष्ट रूप से मौलिक या संवैधानिक अधिकार के रूप में नहीं, बल्कि एक वैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गयी है।
- मौलिक अधिकार के रूप में इसकी मान्यता केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है। संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत कानून की ऐसी घोषणा पूरे भारत में सभी अदालतों पर बाध्यकारी है।
समलैंगिक विवाह पर सर्वोच्च न्यायलय के पूर्व विचार:
मौलिक अधिकार के रूप में विवाह (शफीन जहाँ बनाम अशोकन के.एम. और अन्य- 2018):
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 16 और पुट्टास्वामी मामले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
- अनुच्छेद 16(2) के अनुसार, धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
LGBTQ समुदाय सभी संवैधानिक अधिकारों का हकदार है (नवतेज़ सिंह जौहर और अन्य बनाम भारत संघ- 2018):
- सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि LGBTQ समुदाय के सदस्य, "अन्य सभी नागरिकों की तरह, संविधान द्वारा संरक्षित स्वतंत्रता के साथ समस्त संवैधानिक अधिकारों के हकदार हैं" और समान नागरिकता तथा "कानून के समान संरक्षण" के भी हकदार हैं।