मलयालम साहित्य और सिनेमा के सबसे सम्मानित व्यक्तियों में से एक मदथ थेक्केपट वासुदेवन नायर, जिन्हें एम टी वासुदेवन नायर के नाम से जाना जाता है, का केरल के कोझिकोड के एक अस्पताल में निधन हो गया।
हृदय गति रुकने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था और इलाज़ के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। ज्ञानपीठ पुरस्कार एम टी वासुदेवन नायर विजेता 91 वर्ष के थे।
केरल सरकार ने एम टी वासुदेवन नायर के सम्मान में दो दिन का राजकीय शोक घोषित किया।
एम टी वासुदेवन नायर ने अपने पीछे सात दशकों से अधिक के साहित्य और फिल्म के क्षेत्र में एक समृद्ध विरासत छोड़ी है ।
मदथ थेक्केपट वासुदेवन नायर का जन्म 1934 में केरल के पलक्कड़ जिले के कुडल्लूर गांव में एक नायर परिवार में हुआ था।
कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के द न्यूयॉर्क हेराल्ड ट्रिब्यून द्वारा आयोजित विश्व लघु कथा प्रतियोगिता में मलयालम में सर्वश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार जीता।
स्नातक होने के बाद वे मातृभूमि साहित्यिक पत्रिका में शामिल हो गए और बाद में इसके संपादक बन गए। वे इस पद पर 1981 तक रहे।
बाद में वे केरल साहित्य अकादमी के अध्यक्ष और थुंचन मेमोरियल ट्रस्ट और रिसर्च सेंटर के अध्यक्ष भी बने।
एम टी वासुदेवन नायर ने 1965 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म मुराप्पेन्नु की पटकथा लिखी।
1973 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म निर्मलयम का निर्देशन किया, जिसने उसी साल सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।
अपने लंबे करियर के दौरान उन्होंने सात फिल्मों का निर्देशन किया और 45 फिल्मों की पटकथाएँ लिखीं।
एक लेखक के रूप में उन्होंने मातृसत्तात्मक परिवारों के संघर्ष को चित्रित किया, जो आधुनिक समाज की मांग के साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
उनके उपन्यास नालुकेट्टू, असुरविथ और कालम ने इसी विषय पर आधारित थे। केरल के नायर समाज एन मातृसत्तात्मक रिश्तेदारी प्रणाली प्रचलित हैं।
उनकी अन्य उल्लेखनीय कृतियाँ असुरविथु, कालम, रंदामूझम, नालुकेट्टू हैं। वाराणसी उनका आखिरी उपन्यास था जो 2002 में प्रकाशित हुआ था।
एम टी वासुदेवन नायर को उनके जीवनकाल में विभिन्न राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
पद्म भूषण- भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण उन्हें भारत सरकार द्वारा 2005 में प्रदान किया गया था।
केरल ज्योति पुरस्कार; 2022 में केरल सरकार का सर्वोच्च पुरस्कार केरल ज्योति पुरस्कार।
ज्ञानपीठ पुरस्कार: 1995 में भारत का सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार।
1969 में उनके उपन्यास नालुकेट्टू के लिए केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार।
उन्होंने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीते।
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