फ्रांस के कान्स शहर में आयोजित हो रहे 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में चिदानंद नाइक और अनसूया सेनगुप्ता ने इतिहास रच दिया। चिदानंद नाइक की फिल्म 'सनफ्लावर वेयर द फर्स्ट टू नो' ने सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म के लिए ला सिनेफ पुरस्कार जीता, जबकि अनसूया सेनगुप्ता अपनी फिल्म शेमलेस के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय बनीं। 1946 में पहली बार आयोजित वार्षिक कान्स फिल्म महोत्सव अब दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में से एक माना जाता है।
प्रतिष्ठित एफटीआईआई के छात्रों ने कान्स फिल्म फेस्टिवल में कई पुरस्कार जीते हैं, लेकिन यह पहली बार था कि 1-वर्षीय टेलीविजन पाठ्यक्रम के किसी छात्र द्वारा बनाई गई फिल्म ने कान्स फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार जीता है।
चिदानंद नाइक की लघु फिल्म 'सनफ्लावर वेयर द फर्स्ट टू नो' ने 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म का ला सिनेफ पुरस्कार जीता। चिदानंद नाइक ने फिल्म को भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई), पुणे में अपने पाठ्यक्रम के हिस्से के अंतर्गत बनाया था।
फिल्म "सनफ्लावर वेयर द फर्स्ट टू नो" लघु फिल्म एफटीआईआई के टेलीविजन विंग के एक वर्षीय कार्यक्रम के चार छात्रों का उनके पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में एक संयुक्त सहयोग था। इसे चिदानंद एस नाइक द्वारा निर्देशित किया गया था, सूरज ठाकुर द्वारा फिल्माया गया था, मनोज वी द्वारा संपादित किया गया थाऔर ध्वनि अभिषेक कदम के द्वारा। ये सभी छात्र 2023 में एफटीआईआई से उत्तीर्ण हुए हैं ।
अभिनेत्री अनसूया सेनगुप्ता ने कान्स फिल्म फेस्टिवल के अन सर्टन रिगार्ड श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतकर इतिहास रच दिया। वह कान्स फिल्म फेस्टिवल में किसी भी श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय बनीं।
अनसूया सेनगुप्ता को बल्गेरियाई फिल्म निर्माता कॉन्स्टेंटिन बोजानोव द्वारा निर्देशित फिल्म शेमलेस में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सम्मानित किया गया।
फिल्म शेमलेस एक सेक्स वर्कर की कहानी पर आधारित है जो एक पुलिसकर्मी को चाकू मारकर दिल्ली के एक वेश्यालय से भाग जाती है। फिल्म संवेदनशील रूप से अस्तित्व और लचीलेपन की मानवीय कहानी को चित्रित करती है।
कान्स फिल्म महोत्सव का 'ला सिनेफ' खंड दुनिया भर के फिल्म स्कूलों के छात्रों द्वारा बनाई गई सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्मों को मान्यता देता है। इस साल 18 फिल्मों को फाइनल राउंड के लिए चुना गया था।
अन सर्टेन रिगार्ड खंड दुनिया भर की अनूठी और मौलिक कहानियों को पहचानता है और उनका सम्मान करता है।
भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान की स्थापना 1960 में भारतीय फिल्म संस्थान के रूप में की गई थी। 1971 में इसका नाम बदलकर भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान कर दिया गया।
यह केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त सोसाइटी के रूप में पंजीकृत है।
आज, एफटीआईआई को दुनिया भर में दृश्य-श्रव्य मीडिया में उत्कृष्टता केंद्र और भारत में सर्वश्रेष्ठ फिल्म संस्थानों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है।
यह फिल्म निर्माण और टेलीविजन के विभिन्न विषयों में पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
मुख्यालय: पुणे, महाराष्ट्र
अध्यक्ष: आर. माधवन