केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश के आगरा में अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र का दक्षिण एशियाई केंद्र स्थापित करने के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। उम्मीद है कि यह केंद्र देश के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों- उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के साथ-साथ पड़ोसी दक्षिण एशियाई देशों की जरूरतों और मांगों को पूरा करेगा।
दक्षिण एशियाई केंद्र उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के सिंगना में 10 हेक्टेयर भूमि पर स्थापित किया जाएगा।
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस उद्देश्य के लिए निःशुल्क भूमि उपलब्ध कराई है।
इस परियोजना में कुल निवेश लगभग 120 करोड़ रुपये है।
केंद्र का उद्देश्य
आलू, जिसका वैज्ञानिक नाम सोलनम ट्यूबरोसम है, एक कंद (भूमिगत तना) है।
इसका उद्गम दक्षिण अमेरिका के एंडीज को माना जाता है और 17वीं शताब्दी की शुरुआत में पुर्तगालियों द्वारा भारत में लाया गया था।
इसे सब्जियों का राजा कहा जाता है और यह चावल, गेहूं और मक्का के बाद भारत में चौथी सबसे महत्वपूर्ण फसल है।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा 25 मई 2025 को जारी बागवानी फसलों के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार:
देशों में 2024-25 में कुल आलू उत्पादन 601.75 लाख टन होने का अनुमान है, जो 2023-24 की तुलना में 31.21 लाख टन अधिक है।
2023-24 में आलू का उत्पादन - 570.54 लाख टन था।
भारत दुनिया में चीन के बाद आलू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
भारत में शीर्ष आलू उत्पादक राज्य
उत्पादकता
आलू की सबसे अधिक उत्पादकता पश्चिम बंगाल में दर्ज की गई, जो 29.9 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है
अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र की स्थापना 1971 में अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान सलाहकार समूह (सीजीआईएआर) द्वारा की गई थी।
केंद्र आलू, शकरकंद और एंडियन जड़ों और कंदों पर अनुसंधान और विकास करता है।
यह किसानों को किफायती, पौष्टिक भोजन तक पहुँच बढ़ाने, समावेशी, टिकाऊ व्यवसाय और रोजगार वृद्धि को बढ़ावा देने और जड़ और कंद कृषि-खाद्य प्रणालियों की जलवायु लचीलापन को बढ़ावा देने के लिए अभिनव विज्ञान-आधारित समाधान प्रदान करने पर केंद्रित है।
मुख्यालय - लीमा, पेरू