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Updated: 21 May 2024
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विलियम लाई चिंग-ते ने 20 मई 2024 को चीन गणराज्य या ताइवान के नए राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। यह सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के लिए लगातार तीसरा कार्यकाल है। निवर्तमान राष्ट्रपति त्साई-इंग वेन भी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी से थी और विलियम लाई चिंग-ते त्साई-इंग वेन प्रशासन में उप राष्ट्रपति थे ।
उपराष्ट्रपति हसिया बी-खिम ने भी देश के उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली।
ताइवान की राजधानी ताइपे में आयोजित समारोह में 29 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और प्रशांत, मध्य अमेरिका और वेटिकन तथा ताइवान के 12 राजनयिक सहयोगी देश भी शामिल थे।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति विलियम लाई चिंग-ते ने कहा कि बीजिंग को ताइवान के खिलाफ अपनी आक्रामकता रोकनी चाहिए और उनका प्रशासन “ताइवान जलडमरूमध्य में शांति और स्थिरता बनाए रखने” का प्रयास करेगा।
ताइवान पश्चिमी प्रशांत महासागर में एक द्वीप देश है। यह चीन के दक्षिणपूर्वी तट से लगभग 160 किमी दूर स्थित है।
चीन, जिसे आधिकारिक तौर पर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के नाम से जाना जाता है, ताइवान को एक अपना प्रांत के रूप में देखता है जिसे चीन का हिस्सा बन जाना चाहिए। चीनी सरकार ने ताइवान को चीन में एकीकृत करने के लिए बल प्रयोग से इनकार नहीं किया है।
चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है। 1894 के चीन-जापान युद्ध में चीन की हार के बाद ताइवान द्वीप, जिसे फॉर्मोसा के नाम से भी जाना जाता है, पर जापान ने कब्जा कर लिया था।
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद, ताइवान 1945 में ,अमरीका और मित्र पश्चिमी देशों के सहयोग से चीन गणराज्य का हिस्सा बन गया, जिस पर चियांग काई शेक का शासन था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चीन में चियांग काई शेक और माओत्से तुंग के नेतृत्व वाले कम्युनिस्टों के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया।
माओ की कम्युनिस्ट पार्टी ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमितांग पार्टी) को गृहयुद्ध में हारा दिया जिसके फलस्वरूप चियांग काई शेक और उनके अनुयायी चीन से ताइवान भाग गए। चियांग काई शेक ने ताइवान में चीन गणराज्य की स्थापना की और माओ ने 1949 में मुख्य भूमि चीन में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की।
चियांग काई शेक ने ताइवान में तानाशाही स्थापित की और ताइवान में पहला चुनाव 1996 में हुआ। चियांग काई शेक के चीन गणराज्य सरकार ने दावा किया कि वह पूरे चीन का प्रतिनिधित्व करती है और उसे पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त है। यहाँ तक की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन की सदस्यता ताइवान के पास थी।
1971 में, संयुक्त राज्य अमेरिका और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के बीच एक समझौते के बाद, संयुक्त राष्ट्र की सदयस्ता पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को दी गई,तथा कई देशों ने मुख्य चीन के रूप में उसे मान्यता दी।
संयुक्त राज्य अमेरिका, जो ताइवान का सबसे बड़ा समर्थक है, ने 1979 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए।
चीन एक-चीन नीति का पालन करता है जिसके तहत ताइवान को मान्यता देने वाला कोई भी देश चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित नहीं कर सकता है। प्रारंभ में, कई देशों ने ताइवान के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे क्योंकि इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त था।
चीन की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक ताकत के कारण कई देशों ने ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़कर चीन के साथ संबंध स्थापित कर लिए हैं।
वर्तमान में, केवल 12 देश ताइवान को मान्यता देते हैं।
चीन ने ताइवान के लिए "एक देश, दो प्रणाली" का सुझाव दिया है, जिसमें उसने कहा है कि अगर ताइवान बीजिंग के नियंत्रण में आने के लिए सहमत हो जाता है तो इससे ताइवान को महत्वपूर्ण स्वायत्तता मिल जाएगी। चीन हांगकांग का उदाहरण देता है। हांगकांग 200 वर्षों से अधिक समय तक ब्रिटिश शासन के अधीन था और 1997 में "एक देश, दो प्रणाली" के तहत इसे चीन को वापस सौंप दिया गया था।
ताइवान ने चीन का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया है। 2000 में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के चेन शुई-बियान ताइवान के राष्ट्रपति चुने गए, और उन्होंने एक अलग देश के रूप में ताइवान की स्वतंत्रता का आह्वान किया था ।
जवाब में, चीन ने 2004 में एक अलगाव विरोधी कानून पारित किया। यह कानून चीन से अलग होने की कोशिश करने पर ताइवान के खिलाफ गैर शांतिपूर्ण तरीकों के इस्तेमाल का प्रावधान करता है।
चीनी राष्ट्रपति झी जिनपिंग ने ताइवान को चीन में फिर से मिलाने के लिए 2049 की तारीख तय की है।
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नियमित रूप से ताइवान के आस पास युद्ध अभ्यास करती है और उसकी वायु सेना बार बार ताइवान को डराने के लिए नियमित रूप से ताइवान के हवाई क्षेत्र को पार करती रही है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के चीन के साथ राजनयिक संबंध है और एक वह एक चीन नीति के तहत चीनी सरकार को वैध मानता है। हालांकि अमरीका ताइवान का सबसे बड़ा समर्थक देश भी है।
संयुक्त राज्य अमेरिका ताइवान को हथियार और गोला-बारूद प्रदान करने के लिए अपने देश के कानून के द्वारा बाध्य है।
वर्तमान बिडेन प्रशासन ने कहा है कि अगर चीन द्वारा ताइवान पर हमला किया गया तो वह सैन्य रूप से उसकी रक्षा करेगा।
नेहरू के समय भारत ने एक चीन नीति को स्वीकार किया था और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे । भारत का ताइवान के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं है।
हालाँकि, 1991 में भारत सरकार द्वारा पूर्व की और देखो नीति अपनाने के बाद, भारत और ताइवान के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ावा मिला है।
1995 में, दोनों देशों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित किए। दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश बढ़ रहा है। 2023 में भारत और ताइवान के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 8.224 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
फॉक्सकॉन जैसी ताइवान की कंपनी ने भारत में निवेश किया है।
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