आईआईटी-गुवाहाटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक ऐसा कपड़ा विकसित किया है जो पानी से तेल को अलग कर सकता है। इससे समुद्र और महासागरों में पेट्रोलियम तेल फैलने के कारण होने वाले समुद्री प्रदूषण से निपटने में बहुत मदद मिल सकती है। प्रोफेसर वैभव गौड़ के नेतृत्व वाली टीम ने एक ऐसा सिलिका नैनोकण-लेपित सूती कपड़ा विकसित किया है जो पानी से तेल छानने के लिए धान की भूसी का उपयोग करता है ।
तेल रिसाव क्या है?
- तेल रिसाव समुद्री प्रदूषण का एक रूप है। यह तब होता है जब पेट्रोलियम तेल खुले पानी जैसे समुद्र, महासागर में फैल जाता है। ऐसा मुख्य रूप से समुद्र में कच्चे पेट्रोलियम तेल ले जाने वाले सुपर टैंकर जहाज के दुर्घटनाग्रस्त होने या समुद्र तट के किनारे तेल ड्रिलिंग स्थलों पर दुर्घटनाओं के कारण होता है। पानी और तेल के बीच घनत्व के अंतर के कारण तेल पानी में घुल मिल नहीं जाता बल्कि वह पानी की सतह पर तैरता है।
- औद्योगिक निर्वहन या दुर्घटनाओं के कारण तेल फैलने से जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को अपरिवर्तनीय क्षति होती है।
- तेल में कई जहरीले यौगिक होते हैं, इसलिए तेल रिसाव जहां होता है वहां के पर्यावरण के जैविक और अजैविक घटकों को नुकसान पहुंचा सकता है।
- तेल रिसाव से पानी की सतह पर एक मोटी परत बन जाती है। यह पर्याप्त मात्रा में सूर्य के प्रकाश को पानी के सतह से भीतर प्रवेश करने से रोकता है।
- यह पानी में घुलित ऑक्सीजन के स्तर को भी कम कर देता है जिससे दम घुटने के कारण जलीय जीवों की मृत्यु हो जाती है।
तेल रिसाव की सफाई के लिए नियोजित वर्तमान तकनीक की कमियाँ
वर्तमान में तेल रिसाव के कारण प्रदूषित पानी को साफ करने के लिए कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है। सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली तकनीकें, स्किमिंग या तेल को प्रदूषित पानी में जलाना बहुत अधिक प्रभावी भी नहीं हैं और साथ ही बहुत महंगी भी हैं।
स्कीमर यांत्रिक उपकरण हैं जो पानी की सतह से तेल को अलग करते हैं। जिस क्षेत्र में तेल गिरा है उसे नियंत्रित तरीके से जला दिया जाता है। हालांकि, जलाने से प्रदूषण बढ़ने, मानव स्वास्थ्य प्रभावित होने और जलीय जीवन खत्म होने का खतरा होता है।
आईआईटी-गुवाहाटी द्वारा विकसित तकनीक कैसे काम करती है?
प्रोफेसर गौड के अनुसार, धान की भूसी सिलिका नैनोकणों का एक उत्कृष्ट स्रोत है।
- उनके द्वारा विकसित की गई तकनीकों के माध्यम से, चावल की भूसी को पहले धीरे-धीरे गर्म किया जाता है और चारकोल में परिवर्तित किया जाता है, जिसे बायो-चार भी कहा जाता है।
- इसके बाद, इस बायो-चार को और अधिक गर्म किया जाता है और सिलिका नैनोकणों में बदल दिया जाता है।
- फिर इन सिलिका नैनोकणों को कपास के ऊपर लेपित किया जाता है, जिससे तेल-पानी के मिश्रण को अलग करने के लिए एक प्राकृतिक त्रि-आयामी सोरबेंत बनता है।
- लेपित सूती कपड़े सिर्फ तेल को सोखता हैं और इस तरह प्रदूषित पानी को साफ करने में मदद करता हैं।
- प्रोफेसर गौड के अनुसार, उनकी टीम द्वारा विकसित नैनोकण-लेपित सूती कपड़े में 98 प्रतिशत दक्षता है और बार-बार उपयोग और कठोर वातावरण के संपर्क में आने के बाद भी इसकी कार्यक्षमता बरकरार रहती है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी, असम की स्थापना 1994 में भारत के छठे आईआईटी के रूप में की गई थी।
यह भारत के संपूर्ण उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लिए एकमात्र आईआईटी है।
भारत में इस समय 23 आईआईटी हैं।
भारत में स्थापित होने वाला पहला आईआईटी ,आईआईटी खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) था जिसने 1951 में अपना शैक्षणिक सत्र शुरू किया था।
आईआईटी की स्थापना एन.आर.सरकार समिति की सिफारिश पर भारत सरकार द्वारा उच्च तकनीकी संस्थानों के रूप में की गई थी।