हर साल 20 मई को विश्व शरणार्थी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उन शरणार्थियों की दुर्दशा के बारे में दुनिया की चेतना बढ़ाने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने युद्ध, उत्पीड़न, हिंसा या आर्थिक कारकों आदि के कारण अपने घर छोड़ दिए हैं।
विश्व शरणार्थी दिवस की उत्पत्ति अफ्रीकी शरणार्थी दिवस में निहित है। 1975 में, अफ़्रीकी एकता संगठन (ओएयू) ने संघर्ष के कारण अफ़्रीका में जबरन विस्थापित हुए लोगों के हिम्मत और हर परिस्थिति में लड़ने को सम्मान देने के लिए 20 मई को अफ़्रीकी शरणार्थी दिवस के रूप में मनाने का एक प्रस्ताव पारित किया था। उसके बाद अफ्रीका में हर साल 20 मई को अफ़्रीकी शरणार्थी दिवस के रूप मान्य जाने लगा।
अफ्रीकी शरणार्थी दिवस की सफलता को ध्यान में रखते हुए, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 2000 में 20 मई को अफ्रीकी शरणार्थी दिवस के साथ विश्व शरणार्थी दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया।
पहला विश्व शरणार्थी दिवस 20 मई 2001 को मनाया गया था।
साल 2001 का महत्व इसलिए भी था क्योंकि 2001 में 1951 शरणार्थी कन्वेंशन की 50वीं वर्षगांठ थी, जो शरणार्थियों के अधिकारों को रेखांकित करता है।
विश्व में 1951 शरणार्थी कन्वेंशन और 1967 प्रोटोकॉल विश्व में शरणार्थियों के सुरक्षा और अधिकार के लिए एक मील का पत्थर है।
भारत ने 1951 शरणार्थी कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं लेकिन यूएनएचसीआर 1981 से भारत में सक्रिय है।
2024 विश्व शरणार्थी दिवस का विषय है: घर से दूर आशा
जो लोग अपना घर छोड़कर दूसरे देश में भागने के लिए मजबूर होते हैं उन्हें शरणार्थी, शरण चाहने वाले, आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति और राज्यविहीन व्यक्ति कहा जाता है।
1951 शरणार्थी कन्वेंशन के अनुसार, वह व्यक्ति शरणार्थी है जो अपनी जाति, राजनीतिक राय, धर्म आदि के आधार पर उत्पीड़न के डर से अपना घर (देश) छोड़कर दूसरे देश में भाग गया है। इसमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के कारण अपने घर छोड़कर भाग गए।
ये वे लोग हैं जो राजनीतिक, धार्मिक या अन्य आधारों पर उत्पीड़न का दावा करते हुए अपना देश छोड़कर दूसरे देश में चले गए हैं। हालाँकि, जिस देश में वे भागे हैं, उस देश ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि उनका दावा सच है या नहीं।
शरणार्थियों या शरण चाहने वालों के विपरीत, आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति संघर्ष के कारण किसी विदेशी देश में नहीं जाते हैं बल्कि देश के भीतर ही अपने निवास स्थान से दूसरे क्षेत्र में जाने के लिए मज़बूर हो जाते हैं।
शरणार्थियों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अनुसार, राज्यविहीन व्यक्ति वे व्यक्ति हैं जो किसी भी देश से संबंधित नहीं हैं और जिनकी कोई परिभाषित राष्ट्रीयता नहीं है।
लौटने वाले लोग, पूर्व शरणार्थी/आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति हैं जो अपने मूल निवास स्थान पर वापस लौट आए हैं।
1951 शरणार्थी कन्वेंशन में शरणार्थियों को कई अधिकार दिये गए हैं और यह अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन, मेजबान देश का शरणार्थियों के प्रति दायित्वों पर भी प्रकाश डालता है।
शरणार्थी कन्वेंशन के अनुसार, मेजबान देश किसी शरणार्थी को उनके मूल देश में वापस जाने के लिए बाध्य नहीं करेगा अगर वहाँ उसके जीवन या स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा है ।
शरणार्थी जिस देश में शरण लेते हैं उन्हे वहाँ कई प्रकार के अधिकार मिलने चाहिए हैं, जैसे शिक्षा, आवास, काम का अधिकार आदि।
संयुक्त राष्ट्र ने शरणार्थियों के लिए एक विशेष संस्था यूएनएचसीआर भी बनाई है।
यूएनएचसीआर, या संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी, को द्वितीय विश्व युद्ध द्वारा उत्पन्न शरणार्थी संकट से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा शरणार्थियों के लिए उच्चायुक्त के कार्यालय के रूप में स्थापित किया गया था।
यह 14 दिसंबर 1950 को अस्तित्व में आया।
यूएनएचसीआर शुरू में तीन साल के लिए बनाया गया था, लेकिन बाद में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने समय-समय पर इसका जनादेश बढ़ाया।
2003 में, यूएनएचसीआर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक स्थायी निकाय बनाया गया।
यूएनएचसीआर शरणार्थियों, शरण चाहने वालों, राज्य में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों और ऐसे लोगों की सुरक्षा के लिए काम करता है जिनकी राष्ट्रीयता विवादित है।
यूएनएचसीआर का मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड