हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ अगले 15 वर्षों के लिए सीआईएस-एमओए (CISMOA) सुरक्षा समझौता किया है। इस समझौता के बाद अब पाकिस्तान के लिए अमेरिका से घातक हथियार प्राप्त करने का मार्ग और भी स्पष्ट हो गया है।
अमेरिका अपने उन करीबी मित्र देशों और सहयोगियों के साथ ही इस तरह का समझौता करता है जिनके साथ वह करीबी सैन्य और रक्षा सहयोग बढ़ाना चाहता हो।
इससे पूर्व अमेरिका ने वर्ष 2018 में भारत के साथ भी इसी तरह सुरक्षा समझौता किया था।
सीआईएस-एमओए, अमेरिका के रक्षा मंत्रालय को अन्य देशों को सैन्य हथियार और उपकरण बेचने के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है।
सीआईएस-एमओए पर हस्ताक्षर होने से दोनों देश संस्थागत तंत्र बनाए रखने के लिए सहमत हैं। इससे पूर्व वर्ष 2005 में अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ अगले 15 वर्ष के लिए इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था। जो 2020 में समाप्त हो गया था और उस समय इमरान खान प्रधानमंत्री के काल में इसे रिन्यू नहीं किया जा सका था।
यह समझौता खत्म हो गया था लेकिन अब दोनों ही देशों ने फिर से इसे अगले 15 वर्ष मंजूरी दे दी है।
सीआईएस-एमओए के तहत दोनों देश संयुक्त अभ्यास, अभियान, ट्रेनिंग, एक-दूसरे के बेस और उपकरण का उपयोग कर सकेंगे।
इस समझौते से अब अमेरिका भविष्य में पाकिस्तान को कुछ घातक हथियार बेच सकता है।
सामान्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका जिस देश के साथ भविष्य में अति संवेदनशील हथियारों, तकनीकी जानकारी आदि का आदानप्रदान करना चाहता हो तो उस देश के साथ चार आधारभूत रक्षा समझौता करता है। इन समझौते में मुख्यतः
जेनरल सिक्युरिटी ऑफ मिलिट्री इन्फोर्मेशन एग्रीमेंट (जीएसओएमआईए),
लोजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट (एलएसए), (भारत के साथ लेमोआ)
कम्युनिकेशन एंड इन्फोर्मेशन सिक्युरिटी मेमोरंडम ऑफ एग्रीमेंट (सीआईएस-एमओए) (भारत के साथ कॉमकासा) और
बेसिक एक्सचेंज एंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट फॉर जीओसपेशियल इंटेलीजेंस (बीइसीए-बेका)।
भारत अमेरिका के साथ उपर्युक्त सभी रक्षा समझौता पूर्ण कर लिए है, जबकि पाकिस्तान ने अभी तक सिर्फ एक ही सीआईएस-एमओए पर सहमति बनी है।