केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत पूर्वी भारत की पहली और देश की छठी खगोलीय वेधशाला का उद्घाटन पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के गरपंचकोट क्षेत्र के पंचेत पहाड़ी पर किया गया।
यह लद्दाख, नैनीताल (उत्तराखंड), माउंट आबू (राजस्थान), पुणे में गुरबानी हिल्स और तमिलनाडु में कवलूर के बाद भारत में छठी ऐसी वेधशाला है।
सत्येंद्र नाथ बोस खगोलीय वेधशाला
- गरपंचकोट पहाड़ियों में स्थापित वेधशाला का नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर रखा गया है। वेधशाला की स्थापना कोलकाता स्थित सत्येंद्र नाथ बोस राष्ट्रीय मूल विज्ञान केंद्र द्वारा की गई है।
- सत्येंद्र नाथ बोस राष्ट्रीय आधारभूत विज्ञान केंद्र ने वेधशाला चलाने और संसाधनों को साझा करने के लिए सिद्धू कानू बिरसा विश्वविद्यालय,पुरुलिया के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं।
- सत्येंद्र नाथ बोस राष्ट्रीय मूल विज्ञान केंद्र की स्थापना 1986 में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा की गई थी।
- यह देश में मूल विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास संस्थान है।
वेधशाला के बारे में
- इस वेधशाला बनाने की परियोजना 2012 में शुरू हुई थी और इसे 4.9 एकड़ भूमि पर बनाया गया है।
- वेधशाला में वर्तमान में एक 14 इंच व्यास की दूरबीन है और जल्द ही एक और 1 मीटर व्यास की दूरबीन स्थापित की जाएगी।
- वेधशाला समुद्र तल से 600 मीटर की ऊँचाई और लगभग 86 डिग्री पूर्वी देशांतर पर स्थित है। यह वेधशाला शहर की रोशनी से दूर, गैर प्रदूषित क्षेत्र में स्थापित की गई है।
- उत्तर में आर्कटिक महासागर से लेकर दक्षिण में अंटार्कटिका तक फैले 86 डिग्री पूर्वी देशांतर पर दुनिया में बहुत कम वेधशालाएँ हैं। एस एन बोस वेधशाला से इस कमी को पूरा करने की उम्मीद है।
- वेधशाला छात्रों और वैज्ञानिकों को खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी और वायुमंडलीय विज्ञान के क्षेत्र में बुनियादी शोध करने में मदद करेगी।
- वेधशाला के पास एक स्वचालित मौसम पूर्वानुमान केंद्र भी स्थापित किया गया है जो वर्षा को मापने में सहायक होगा।
- यह अत्याधुनिक वेधशाला क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान में क्रांति लाने के लिए तैयार है, खासकर अंतरिक्ष विज्ञान में।